बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

कुछ ग़ज़लें - 2 - विनोद कुमार दवे

ग़ज़ल का अंश.... तुम्हें न भूल पाते है हम खामोश है मगर तुम्हें भूल न पाते हैं दिल से सदा देकर तुम्हीं को तो बुलाते हैं। और तो क्या करें दुनिया के रिवाजों का, आओ मेरे यार इनकी होली जलाते है। इन दीवारों को कभी तो गिरना है ही, हम दोनों मिलकर ये दूरी मिटाते है। नफ़रत के आगोश में जी लिए जिन्हें जीना था, हम तो खुशबु-ए- इश्क़ की हवा चलाते है। मत रहो उदास इन हसीन लम्हों के दरमियान थोड़ा तुम मुस्करा दो थोड़ा हम मुस्कराते है। ऐसी ही अन्य ग़ज़लों का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए... ई-मेल - davevinod14@gmail.com

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