मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

बाल कहानी - मलुंगाई - विमला मेहता

कहानी का अंश... हजारों बरस पहले फिलीपिंस देश के पहाड़ी कस्बे में एक बूढ़ा रहता था। उसका नाम मलुंगाई था। उसकी पत्नी का नाम था मगंदा। उनकी कोई संतान नहीं थी। वे पेड़-पौधो को ही अपनी संतान मानकर उनकी देखभाल करते थे। बागियो में फूलों के अनेक वृक्ष थे। जून-जुलाई में वहाँ फूल से वृक्ष लद जाते थे। तब परियां वहाँ आती थी। उन्हें फूलों से बहुत प्यार था। रात में परियां झुंड बनाकर धरती पर आती थी। भोर की किरणें फूटते ही वे परीलोक लौट जाती थीं। उनमें लाल परी थी जिसे मनुष्य लोक की नदियों, तालाबाें और पहाड़ों में घूमना बहुत अच्छा लगता था। वे मनुष्य लोक में अधिक समय बिताना चाहती थी। परंतु परीलोक के नियमानुसार उसे सूरज उदय होने से पूर्व ही लौट आना होता था। एक दिन परी अपनी सहेलियों के साथ वहां से जब लौअ रही थी, तो उसकी छड़ी वहीं पर पड़ी रह गई। परीलोक पहुँच कर उसने छड़ी खोजी पर वह उसे नहीं मिली । तब उसने धरती पर आकर उसे खोजा। बूढ़ा मलुंगाई उसके पास आया और उसने बताया कि छड़ी उसके पास है, मगर वह उसे अपने साथ परीलोक की सैर करवा दे। परी ने कहा कि उसके पंख नहीं हैं, इसलिए वह उसे परीलोक नहीं ले जा सकती। तब परी मां के कहने पर लाल परी ने उसे जो भी वस्तु चाहिए वह देने का वादा किया पर मलुंगाई ने उससे सोना-चांदी, हीरे-मोती कुछ भी न मांगा, तो फिर मलुंगाई ने क्या मांगा? जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए....

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