शनिवार, 17 दिसंबर 2016

नीति के दोहे -1 - कवि रहीम

रहीम जी का हिंदी साहित्य जगत में योगदान अतुल्य है। समाज को आईना दिखाने वाली बातें, वे अपने दोहों में कह जाते थे। मानव जाति को रहीम के दोहों से सही एवं गलत में फर्क करने की सीख मिलती है। उन्होंने सदैव सरल भाषा का प्रयोग किया जिससे उनकी वाणी और लोकप्रिय हुई। यहाँ प्रस्तुत हैं उनके कुछ नीति के दोहे - 1. जो रहीम उतम प्रकृति, का करी सकत कुसंग| चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग|| 2. रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून| पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून|| 3. रहिमन देखि बडेन को, लघु न दीजिए डारि| जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि|| 4. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान| कहि रहीम पर काज हितए संपति सँचहि सुजान|| 5. जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥ 6. रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि। उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥ 7. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। विपति कसौटी जे कसै, ते ही साँचे मीत।। 8. खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय| रहिमन करूए मुखन को, चाहिए यही सजाय|| 9. कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन। जैसी संगति बैठिए, तैसो ही होत दीन।। 10. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं| जान परत है काक पिक, रितु बसंत के माहिं|| 11. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥ इन दोहों का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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