बुधवार, 23 नवंबर 2016

कविताएँ - आभा सक्सेना

आसमान में अंकित सूरज... कविता का अंश... आसमान में अंकित सूरज, मेरा तुमको आमंत्रण है। राज करो आकर धरती पर, बदली में कैसा विचरण है? हुए कई दिन पास न आए, ऐसी भी है क्या मजबूरी? ठिठुर रहे हैं बच्चे-बूढ़े, प्रश्न यहाँ पर, जन्म-मरन है। देखो कितनी किरनें फूटीं, कितनी ही आशायें रूठीं, आ जाओ अब मेरे प्यारे, कितने मैंने किए जतन हैं। रूठ गये हैं अलाव यहाँ पर, ठंडी पड़ गयी चिंगारी भी। हुए बहुत मायूस ये पंछी, लौट चले वह अपने,, वतन हैं। आसमान में अंकित सूरज, मेरा तुमको आमंत्रण है। राज करो आकर धरती पर, बदली में कैसा विचरण है? ऐसी ही अन्य प्रकृति से जुड़ी कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए... संपर्क - ई मेलः abhasaxena08@yahoo.com

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