शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

कविता - कालिदास! सच-सच बतलाना ! - नागार्जुन

कविता का अंश... कालिदास! सच-सच बतलाना ! इंदुमती के मृत्यु शोक से, अज रोया या तुम रोये थे ? कालिदास! सच-सच बतलाना ? शिवजी की तीसरी आँख से, निकली हुई महाज्वाला से, घृतमिश्रित सूखी समिधा सम, कामदेव जब भस्म हो गया, रति का क्रंदन सुन आँसू से, तुमने ही तो दृग धोये थे ? कालिदास! सच-सच बतलाना, रति रोयी या तुम रोये थे ? वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका, प्रथम दिवस आषाढ़ मास का, देख गगन में श्याम घन-घटा, विधुर यक्ष का मन जब उचटा, खड़े-खड़े जब हाथ जोड़कर, चित्रकूट के सुभग शिखर पर, उस बेचारे ने भेजा था, जिनके द्वारा ही संदेशा, उन पुष्करावर्त मेघों का, साथी बनकर उड़ने वाले, कालिदास! सच-सच बतलाना, पर पीड़ा से पूर-पूर हो, थक-थक कर और चूर-चूर हो, अमल-धवल गिरि के शिखरों पर, प्रियवर! तुम कब तक सोये थे? रोया यक्ष या तुम रोये थे? कालिदास! सच-सच बतलाना ! इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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