शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

कविता - हौसले - भारती परिमल

कविता का अंश... हौसला हौसले बन जाते हैं, खुले आसमान में परवाज़। और ऊपर बहुत ऊपर तक, पहुँचने को हो जाते हैं उतावले। हौसले बन जाते हैं, बहती नदी की चंचल धारा। और दूर बहुत दूर समंदर की ओर, बढ़ते चले जाते हैं। हौसले बन जाते हैँ, हिम पर्वत से अटल। और ऊँचे बहुत ऊँचे तक, अंकित कर देते हैं पद चिन्ह। हौसले बन जाते हैँ, एक उपजाऊ ज़मीन। और गहरे बहुत गहरे तक, फैल जाती है विश्वास की जड़, सतह पर फूटता है एक अंकुर। हौसले बन जाते हैं, हमारे व्यक्तित्व की अनोखी पहचान। हौसले बना देते हैं, हमें आम से एक खास इंसान। इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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