शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

कहानी - पड़ोसिन - शालू दुग्गल

कहानी का अंश.... सीमा को हमारे पड़ोस में आए अभी 1 महीना ही हुआ है, पर वह हर किसी से कुछ ज्यादा ही खुलने की कोशिश करती है खासकर मुझ से, क्योंकि हम आमनेसामने के पड़ोसी थे. इसीलिए वह बिना बताए बिना बुलाए किसी भी वक्त मेरे घर आ धमकती, कभी कुछ देने तो कभी कुछ लेने. हम पिछले 5 सालों से यहां रह रहे हैं. इस कालोनी में सब अपने में मस्त रहते हैं. किसी को किसी से कोई लेनादेना नहीं. बस कभीकभार महिलाओं की किट्टी पार्टी में या फिर कालोनी के पार्क में शाम को मिल जाते हैं. इतने सालों में मैं शायद ही कभी किसी के घर गई हूं. इसीलिए सीमा की यह आदत आजकल चर्चा का विषय बनी हुई थी. रविवार को सारा दिन आराम करने में निकल गया. शाम को बच्चों ने पार्क चलने को कहा तो पति भी तैयार हो गए. बच्चे और मेरे पति फुटबौल खेलने में व्यस्त हो गए, तो मैं कालोनी की महिलाओं के साथ बातों में लग गई. ‘‘और सुधाजी, आप की पड़ोसिन के क्या हालचाल हैं... यार, सच में कमाल की औरत है. आज सुबहसुबह आ कर इडलीसांभर दे गई... सारी नींद खराब कर दी हम सब की,’’ कह हमारे घर से 4 मकान छोड़ कर रहने वाली एकता ने बुरा सा मुंह बनाया. ‘‘अरे अच्छा ही हुआ जो इडली दे गई. मेरी नाश्ता बनाने की छुट्टी हो गई,’’ पड़ोसिन सविता हंसते हुए बोली. ‘‘अरे बरतन देखे थे ...आज स्टील के बरतन कौन इस्तेमाल करता है? हमारी तो सारी क्रौकरी विदेशी है... बच्चे तो स्टील के बरतन देखते ही चिढ़ गए,’’ एकता बोली. आजकल कालोनी में जब भी महिलाओं का ग्रुप कहीं एकसाथ नजर आए तो समझ लीजिए सीमा ही चर्चा का विषय होगी. कमाल है यह सीमा भी. तभी सामने से सीमा आती दिखी तो एकता दबी जबान में बोली, ‘‘देखो तो जरा इसे... इस का दुपट्टा कहीं से भी सूट से मेल नहीं खा रहा... कैसी गंवार लग रही है यह.’’ ‘‘क्या हाल हैं भाभीजी... आप सब को इडली कैसी लगी?’’ सीमा ने बहुत उत्साह से पूछा. ‘‘अरे, कमाल का जादू है तुम्हारे हाथों में सीमा... बहुत अच्छा खाना बना लेती हो तुम...’’ सब ने एक ही सुर में सीमा की तारीफ की. फिर थोड़ी देर बाद उस के जाने पर सभी उस का मजाक उड़ाते हुए हंसने लगीं. कुछ दिन बाद कालोनी के शादी के हौल में एकता ने अपने बेटे का जन्मदिन मनाया. हर कोई बनठन कर पहुंचा. सीमा इतनी चटक रंग की साड़ी और इतने भारी गहने पहन कर आई गोया किसी शादी में आई हो. फिर एक बार वह सब के बीच मजाक का पात्र बन गई.आए दिन कालोनी में उस का या उस के पति का यों ही मजाक उड़ता. पूरी कालोनी की कारें साफ करने के लिए हम सब ने मिल कर 2 लोगों को रखा हुआ था. पर सीमा का पति दिन में 2-3 बार खुद अपनी कार साफ करता था. आए दिन कालोनी में सीमा का मजाक उड़ता और मैं भी उस में शामिल होती. हालांकि सीमा की काफी बातें मुझे अच्छी लगतीं पर कहीं सब इस की तरह मेरा भी मजाक न उड़ाएं, इसलिए मैं उस से दूरी बनाए रखती. कुछ दिन बाद मेरी बूआसास को दिल का दौरा पड़ा. उन्हें अस्पताल में दाखिल कराया गया. देवर का फोन आते ही मैं और मेरे पति अस्पताल भागे. वहां हमें काफी समय लग गया. मैं ने घड़ी देखी तो खयाल आया कि बच्चे स्कूल से आते ही होंगे. जल्दबाजी में मैं चाबी चौकीदार को देना भूल गई. मुझे उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. मैं ने एकता को फोन किया तो वह बोली कि यार सौरी मुझे शौपिंग के लिए जाना है. अभी घर पर ताला ही लगा रही थी और उस ने फोन काट दिया. एकता के अलावा मेरे पास और किसी का फोन नंबर नहीं था. मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि इतने सालों में मैं ने किसी का फोन नंबर लेने की भी कोशिश नहीं की. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. फिर मैं ने इन से कार की चाबी ली और घर चल दी. रास्ते में जाम ने दुखी कर दिया. घर पहुंचतेपहुंचते काफी देर हो गई. सोच रही थी कि बच्चे 1 घंटे से दरवाजे पर खड़े होंगे. खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था. इस अधूरी कहानी को पूरा जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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