बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

कविताएँ – शैलजा दुबे

कविता का अंश… वो हवा थी… हाँ, वो हवा ही थी… जो पास से गई गुजर। छूते ही उसके कुछ ऐसा हुआ असर, विस्मृत हुई पीडा, वेदना, दुख का मंज़र… हाँ, वो हवा ही थी… जो पास से गई गुजर। स्पर्ष उसका ऐसा लगा, मानो, माँ झुला रही हो झूला। सुला रही हो थपकी देकर। हाँ, वो हवा ही थी… जो पास से गई गुजर। उस हवा में थी रिश्तों की मिठास… अपनेपन का अहसास… किसी के आने की आस… हाँ, वो हवा ही थी… जो पास से गई गुजर। उस हवा में थी चाँदनी की शीतलतता, वसंत का आगमन, सावन के झूले, कोयल की कूक मनभावन। हाँ, वो हवा ही थी… जो पास से गई गुजर। पर, अचानक न जाने क्या हुआ, उस हवा में नहीं थी अब वो बात, वो थी क्षीण, असहाय, दुर्बल गात। लगी थी उसको किसी की नज़र… हाँ, वो हवा ही थी… जो पास से गई गुजर। इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के साथ ही अन्य भावपूर्ण कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…

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