मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016

कविताएँ - 2 - अशोक अंजुम

कविता का अंश... करे कोशिश अगर इन्सान तो क्या-क्या नहीं मिलता, वो उठकर चल के तो देखे जिसे रास्ता नहीं मिलता। भले ही धूप हो कांटे हों पर चलना ही पड़ता है, किसी प्यासे को घर बैठे कभी दरिया नहीं मिलता। कमी कुछ चाल में होगी , कमी होगी इरादों में, जो कहते कामयाबी का हमें नक्शा नहीं मिलता। कहें क्या ऐसे लोगों से जो कहकर लड़खड़ाते हैं, कि हम आकाश छू लेते मगर मौक़ा नहीं मिलता । हम अपने आप पर यारो भरोसा करके तो देखें, कभी भी गिडगिडाने से कोई रुतबा नहीं मिलता। इस कविता के साथ-साथ अन्य कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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