मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

बाल कविताएँ - 2 - हरिवंशराय बच्चन

प्यासा कौआ... कविता का अंश... आसमान में परेशान-सा, कौआ उड़ता जाता था । बड़े जोर की प्यास लगी थी, पानी कहीं न पाता था । उड़ते उड़ते उसने देखा, एक जगह पर एक घड़ा, सोचा अन्दर पानी होगा, जल्दी-जल्दी वह उतरा । उसने चोंच घड़े में डाली, पी न सका लेकिन पानी, पानी था अन्दर, पर थोड़ा, हार न कौए ने मानी । उठा चोंच सें कंकड़ लाया, डाल दिया उसको अन्दर, बडे गौर से उसने देखा, पानी उठता कुछ ऊपर । फिर तो कंकड़ पर कंकड़ ला, डाले उसने अन्दर को। धीरे-धीरे उठता-उठता, पानी आया ऊपर को । बैठ घड़े के मुँह पर अपनी, प्यास बुझाई कौए ने । मुश्किल में मत हिम्मत हारो, बात सिखाई कौए ने । ऐसी ही अन्य बाल कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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