बुधवार, 21 सितंबर 2016

अकबर-बीरबल की कहानी – 20

काजी की धूर्तता.... कहानी का अंश... दिल्ली में फातिमा बीबी नाम की एक स्त्री रहती थी। उसका पति मर गया था। उसकी कोई संतान भी नहीं थी। एक दिन उसने अपने बाकी दिन काटने के लिए हज करने का इरादा किया और इसी इरादे के साथ उसने मक्का-मदीना जाने की तैयारी की। उसने अपने कुछ आभूषणों को बेच कर सोने की मोहरें खरीदी और उन मोहरों में से कुछ खर्च के लिए अपने पास रख ली। बाकी की आठ सौ मोहरें एक मजबूत थैली में बंद करके उसके ऊपर लाख की मोहर लगाकर उसे बंद कर दिया। फातिमा बीबी के पड़ोस में एक काजी रहता था। जिसको लोग बड़ा त्यागी और पवित्र मानते थे। फातिमा बीबी उस थैली को लेकर उसके पास पहुँची और उसे अपनी थैली रखने के लिए कहा। उसने कहा कि इस संसार में आप ही सच्चे और पवित्र मनुष्य हैं। इसलिए आप इस थैली को अपने पास रख लें। मैं हज करने जाना चाहती हूँ। इस में आठ सौ मोहरें हैं। यदि मैं जीती जागती वापस आ गई तो इस थैली को आपसे ले लूँगी और यदि वहीं पर मर गई तो आप इसके मालिक हैं। जो आपकी इच्छा हो, वो कीजिएगा। यह सुनकर काजी ने वह थैली अपने पास रख ली। फातिमा बीबी हज करने के लिए चली गई। जब वह पाँच वर्ष तक वापस नहीं आई तो काजी की नीयत बिगड़ गई। उसने उन मोहरों को हथियाने का सोचा। कुछ दिन तक सोच-विचार कर उसने एक तरकीब खोज निकाली और उस थैली में से आठ सौ मोहरें ले ली। पाँच वर्ष बाद जब फातिमा बीबी वापस आई तो उसे उसकी थैली लौटा दी। जब फातिमा ने अपनी थैली वैसी की वैसी ही सिली हुई देखी तो बड़ी खुश हुई। लेकिन जब घर जाकर उसे खोला तो उसमें से मोहरें गायब थीं। आखिर मोहरें कहाँ गई? क्या उसे काजी ने ले लिया? किस तरह? थैली में मोहरों के बदले में क्या था? इस अन्याय के बाद क्या हुआ? न्याय किसने किया और किस तरह किया? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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