सोमवार, 26 सितंबर 2016

ग़ज़लें - 1 - अनिरुद्ध सिंह सेंगर

ग़ज़ल... जीवन सुखी बनाने को सब ताने-बाने रखता हूँ... जीवन सुखी बनाने को सब ताने-बाने रखता हूँ, अपनी ऑंखां में सदैव मैं स्वप्न सुहाने रखता हूँ। तुमको भाते हैं तो गाओ घिसे-पिटे सब गीतों को, अपने होठों पर मैं लेकिन नये तराने रखता हूँ। माता-पिता, बहन-भाई सब मेरे मन की दौलत हैं, मैं तो अपनी इन ऑंखों में कई ख़जाने रखता हूँ। हर संकट साहस को मेरे देख बहुत घबराता है, सोता हूं टूटी खटिया पर लट्ठ सिरहाने रखता हूँ। मेरे मन के रहस्यवाद को नहीं समझ पाएंगे आप, तहख़ाने के अन्दर भी मैं कई तहख़ाने रखता हूँ। मेरी काव्य कला पर कर दें जो निज प्राण निछावर तक, ऐसे भी ‘अनिरुद्ध’ साथ में, मैं दीवाने रखता हूँ। ऐसी ही अन्य ग़ज़लों का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए... सम्पर्क - aniruddhsengar03@gmail.com, sengar.anirudha@yahoo.com

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