बुधवार, 31 अगस्त 2016

बाल कहानी – गोर्की – सत्यनारायण भटनागर

कहानी का अंश… गोर्की बहुत प्यारा बच्चा है। उसके माता-पिता उसे बहुत प्यार करते हैं। माता-पिता उसकी हर माँग पूरी करते हैं। उससे हँसकर बातें करते हैं। न कभी डाँटते हैं और न ही फटकारते हैं। मारने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। जब कभी गोर्की कोई गलत काम करता तो वे उसे गलती बताते। ऐसे समय में वे स्वयं दुखी हो जाते। उनका दुख उनके चेहरे पर साफ दिखाई देता। गोर्की को तब डाँटने-डपटने या मार खाने से कहीं अधिक दुख होता था। वह शर्मिंदगी अनुभव करता। वह सचेत रहता कि उससे कोई गलत काम न हो और उसके कारण माता-पिता को दुखी न होना पड़े। आज वह बहुत प्रसन्न था। मौसम में गर्म हवा तो थी, लेकिन तपन नहीं थी। वह जल्दी-जल्दी पाठशाला जाने के लिए अपना बस्ता जमा रहा था। बस्ता जमाने के बाद वह ड्राईंग रूम में आया और पिताजी से बोला- पिताजी, आज मैं स्वीमिंग पूल में तैरने जाना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे बीस रूपए चाहिए। पिताजी ने जेब से बीस रूपए निकाले और गोर्की को दे दिए साथ ही बोले – बीस रूपए क्यों? क्या इतना शुल्क लगता है? गोर्की यह सुनकर हड़बड़ा गया और बोला – हाँ, हाँ पिताजी। इतना ही लगता है। गोर्की रूपए लेकर चल दिया किंतु वह मन ही मन परेशान था। उसने अपने पिताजी से झूठ बोला था। उसे चिंता थी कि अगर उसका झूठ पकड़ा गया तो क्या होगा? उसका सारा सोच-विचार इसी प्रश्न पर उलझा हुआ था। वह चला जा रहा था, इस झूठ के प्रश्न पर। कभी वह सोचता कि क्या उसने गलती की? फिर वह सोचने लगा कि पाठशाला से वापस आकर वह अपने पिताजी को सब कुछ सच-सच बता देगा। उसे ऐसा ही करना चाहिए। गोर्की के घर से निकलने के बाद उसके पिताजी को भी मानसिक धक्का लगा था। वे जानते थे कि गोर्की झूठ बोल रहा है। इतने पैसे तो नहीं लगते हैं। लेकिन गोर्की ऐसा क्यों कर रहा है? क्या गार्की किसी गलत संगत में फँस रहा है? वे परेशान हो गए। आखिर गोर्की ने झूठ क्यों बोला? उसके पिता ने उसका झूठ पकड़ने के लिए क्या किया? क्या स्वयं गोर्की ने पिता को सच-सच बता दिया? क्या था सच? यह सारी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए पूरी कहानी जानिए और इसके लिए ऑडियो की सहायता लीजिए…

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