गुरुवार, 4 अगस्त 2016

बाल कविता - मामी निशा - रामनरेश त्रिपाठी

कविता का अंश... चंदा मामा गए कचहरी, घर में रहा न कोई, मामी निशा अकेली घर में कब तक रहती सोई! चली घूमने साथ न लेकर कोई सखी-सहेली, देखी उसने सजी-सजाई सुंदर एक हवेली! आगे सुंदर, पीछे सुंदर, सुंदर दाएँ-बाएँ, नीचे सुंदर, ऊपर सुंदर, सुंदर सभी दिशाएँ! देख हवेली की सुंदरता फूली नहीं समाई, आओ नाचें उसके जी में यह तरंग उठ आई! पहले वह सागर पर नाची, फिर नाची जंगल में, नदियों पर नालों पर नाची, पेड़ों के झुरमुट में! फिर पहाड़ पर चढ़ चुपके से वह चोटी पर नाची, चोटी से उस बड़े महल की छत पर जाकर नाची! इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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