गुरुवार, 11 अगस्त 2016

किसी के लिए मैं गीत लिखूँगा... - वेद पाल सिंह

कविता का अंश... किसी की हार तो किसी की जीत लिखूँगा, आज फिर किसी के लिए मैं गीत लिखूँगा। चाहत को तमन्ना का शब्दों को बातों का, ख़्वाबों को नींदों का सितारों को रातों का, अमीर को तक़दीर का गहरा मीत लिखूँगा, आज फिर किसी के लिए मैं गीत लिखूँगा। भँवरों की फूलों से ठंडी हवा की झूलों से, शाख़ों की शूलों से और यादों की भूलों से, निठल्लों की फ़िज़ूलों से बातचीत लिखूँगा, आज फिर किसी के लिए मैं गीत लिखूँगा। मौजों और धारों की बूँदों और बौछारों की, मस्ती से बेकारों की घोड़ों और सवारों की, ग़रीबी से लाचारों की पुरानी प्रीत लिखूँगा, आज फिर किसी के लिए मैं गीत लिखूँगा। शैम्पू से नहाने की व बाज़ार का खाने की, बनावटी शर्माने की तो सबको बहकाने की, बाप को आँख दिखाने की नई रीत लिखूँगा, आज फिर किसी के लिए मैं गीत लिखूँगा।

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