बुधवार, 3 अगस्त 2016

गुलाब का फूल - भूपेन्द्र कुमार दवे

कहानी का अंश... छोटी सी मिनी बिटिया स्कूल से दौड़ती घर पहुँची तो सीधे नानी के पास गई और बोली, ‘नानी, देखो मैं दौड़ में पहला नंबर आयी हूँ। मुझे ये कप मिला है।’ नानी ने अपना चश्मा लगाया और कप अपने हाथ में लेकर देखा और बोली, ’शाबाश बिटिया, ये तो बहुत प्यारा कप है। अच्छा बताओ, इस बात पर तुम्हें मेरे पास से क्या मिलेगा?’ ‘एक रुपया,’ मिनी ने खुशी से उचकते हुए कहा। ‘कैसे जाना कि मैं तुम्हें एक रुपया दूँगी,’ नानी ने प्रश्न किया। ‘वाह, नानी भूल गये। इसके पहले जब भी मैं परीक्षा में पहला नंबर आयी आपने मुझे एक रुपया ही तो दिया था,’ मिनी बोली। ‘तो उन रुपयों का तुमने क्या किया?’ नानी पूछा। ‘वो सारे मैंने गुल्लक में डाल दिये,’ मिनी ने जवाब दिया। ‘देखो, अब जो मैं तुमको रुपया दूँ तो उसे गुल्लक में मत डालना। उसे जो तुम्हारे मन में भाये उसमें खर्च करना। ठीक है।’ यह कह नानी ने मिनी को एक रुपया दिया और कहा, ‘जा, इससे कुछ खरीद ले।’ बाजार मिनी के घर के पास था। मिनी रुपया लेकर बाजार तरफ दौड़ पड़ी। वहाँ उसने सड़क पर खूब भीड़ देखी। सड़क पर वर्दी पहने सैनिक धुन बजाते मार्च कर रहे थे और सड़क के दोनों ओर लोग कतारबद्ध खड़े थे। मिनी ने देखा कि भीड़ में प्रायः सभी लोगों के हाथ में पुष्पगुच्छ थे। उसने सोचा कि शायद सड़क पर से किसी परी की सवारी जा रही होगी और उसको फूल भेंट करने लोग जमा हैं। फिर उसने सोचा कि हो सकता है कि कोई राजकुमार जिसकी कहानी नानी बताती थी वही जा रहा हो। इस तरह के अनेक विचार उसके मन में उठे। वह वहाँ से दौड़ पड़ी और फूलवाले के पास के पास जाकर उसने नानी का दिया रुपया दिखाकर कहा, ‘ क्या वह उसे एक रुपये में फूल का गुच्छा दे सकेगा?’ आगे की कहानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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