गुरुवार, 25 अगस्त 2016

बाल कविता - नाच रहा जंगल में मोर - पुरुषोत्तम तिवारी

कविता का अंश... हरा सुनहरा नीला काला रंग बिरंगे बूटे वाला, चमक रहा है कितना चमचम इसका सुन्दर पंख निराला। लंबी पूंछ मुकुट धर सिर पर भीमाकार देह अति सुन्दर, कितनी प्यारी छवि वाले ये इन पर मोहित सब नारी नर। वर्षा ऋतु की जलद गर्जना सुनकर होकर भाव विभोर, नाच रहा जंगल में मोर बच्चों तुम मत करना शोर। सुनकर यह आवाज तुम्हारी तुम्हें देखकर डर जाएगा, अपने प्राणों की रक्षा में कहीं दूर यह भग जाएगा। फिर कैसे तुम देख सकोगे मनमोहक यह नृत्य मोर का, देखो कैसे देख रहा है दृश्य घूमकर सभी ओर का। नृत्य कर रहा कितना सुन्दर अपने पंखों को झकझोर, नाच रहा जंगल में मोर बच्चों तुम मत करना शोर। इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए... संपर्क - ई-मेल - ptsahityarthi@rediffmail.com

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