गुरुवार, 18 अगस्त 2016

रक्षाबंधन पर कविता - 5 - मधु शुक्ला

राखी आई है... कविता का अंश... भाई है परदेस, बहन की राखी आई है। राखी के संग प्यार भरी, इक पाती आई है। हल्दी, कुमकुम, अक्षत, रोली, कस्तूरी चन्दन, विश्वासों की डोर लिये, आया रक्षाबन्धन। आशीषों के तिलक, सगुन के नेह भरे धागे, बाँध रहा मन को, पावन रिश्तों का अपनापन। लेकर नयी उजास, दीप की बाती आई है। माँ का लिखा दुलार, पिता का प्यार भरा सम्बल। ओढ़ लिया ज्यों भरी शीत में, नरम-नरम कम्बल। आखर-आखर लगे छलकने, भावों के कलसे। भिगो गया फिर अहसासों को, जैसे गंगाजल। तोड़ मौन के बाँध, नदी बरसाती आई है। इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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