शनिवार, 2 जुलाई 2016
बाल कहानी - फिर गए दिन
कहानी का अंश... स्वेतलाना ने नृत्य करना शुरू किया तो सुंदर युवती फिर वहाँ आ गई। वे दोनों शाम तक नृत्य करती रहीं। अचानक युवती नृत्य करते-करते रूक गई। स्वेतलाना सन देखकर रोने लगी। सुंदरी ने उससे कहा - तुम रोओ मत। तुम अपना थैला मुझे दे दो। स्वेतलाना ने अपना थैला उसे दे दिया। युवती ने थोड़ी देर बाद उसे थैला वापस दे दिया और कहा कि देखो जो सन आज तुमने नहीं काता है, उसे मैंने कात दिया है। इस थैले को रास्ते में मत खोलना। घर जाकर ही देखना कि इसमें क्या है। यह कहते हुए सुंदरी अदृश्य हो गई। स्वेतलाना उस थैले को लेकर चल पड़ी। वह सोच रही थी कि क्या सचमुच इस थैले में सन काता हुआ होगा? उसने इतनी जल्दी कात लिया होगा? क्या उसने जिज्ञासावश वह थैला खोलकर देखा होगा? क्या वह थैला काते हुए सन से भरा होगा? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए सुनिए बाल कहानी - फिर गए दिन...
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दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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