शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

कविताएँ - प्रभा मुजुमदार

कविता का अंश... घुन... घुन है कि लग ही जाते है किसी भी चीज में जरा भी लापरवाही हो जाये अगर समेटने, सहेजने, संवारने में. गेंहू और चावल मूंग और चने तक ही रहे तो फिर भी ठीक है मगर धुन तो जकड लेते है हमारे अरमान आशाओं को. सपनों महात्वाकांक्षाओं को हँसी और खुशियों को. जीने के उल्लास को असमय ही कर देते है चूर. जर्जर कर देते है सम्बन्धों की बुनियाद को. बुझा देते है रिश्तों की आंच सोख लेते है सम्वेदनाओं की नमी. खुशनुमा गुनगुनी धूप को दहकते अंगारों में, संगीत की लय को चुभते मर्माहत करने वाले शोर में बदल देते है. बस एक बार लग जायें कहीं घुन बदल ही देते है उसकी रंगत. इस अधूरी कविता को पूरा सुनिए ऑडियो की मदद से...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels