मंगलवार, 5 जुलाई 2016

बाल कहानी - समानता - उपासना बेहार

कहानी का अंश... रोशनी अपने परिवार के साथ मानपूर गाँव में रहती थी. उसका एक बड़ा भाई सोनू था. रोशनी के पिता पुराने ख्यालों के थे. वे लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने के पक्ष में नही थे। इन्ही सोच के कारण वो रोशनी को स्कूल नही भेजना चाहते थे लेकिन रोशनी की माँ ने कहा “लड़की को कम से कम इतना तो पढ़ा देते हैं कि वह अपना नाम लिखना जान जाये”. इस तरह रोशनी को बड़े बेमन से उसके पिता ने स्कूल में दाखिला कराया. दोनों भाई बहन पढ़ाई में अच्छे थे. धीरे धीरे दोनों बच्चे बड़े होने लगे. जब रोशनी ने 5 कक्षा पास कर ली तो उसके पिता उसकी पढ़ाई बंद करवा दी और कहा कि अब से वह घर के कामों को सीखेगी. रोशनी बहुत रोई, अपने पिता से बहुत मिन्नतें की “पिता जी मैं आगे पढ़ना चाहती है, मैं स्कूल जाने से पहले और स्कूल से आने के बाद घर के काम में माँ का हाथ बँटा दिया करुँगी”. पर रोशनी के पिता नही माने और उन्होनें रोशनी का स्कूल जाना बंद करवा दिया. रोशनी सुबह उठते ही घर के कामों में जुट जाती. वो रोज अपने सोनू भईया का स्कूल बैग ठीक करती, उसे यूनिफार्म देती, नाश्ता कराती और उसे स्कूल जाते देखती. भाई के स्कूल जाने के बाद वह अकेले में रोती और सोचती ‘काश मैं भी फिर से स्कूल जा पाती’. रोशनी का स्कूल तो छूट गया लेकिन उसमें पढ़ने की ललक और लगन कम नही हुई. उसने एक उपाय निकाला. वह घर का काम करने के बाद दोपहर में अपने भाई की किताबें उठा कर चुपके चुपके पढ़ने लगी, रात में भी सब के सो जाने के बाद वह चुपके से किताबें पढ़ा करती. आगे की कहानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए... सम्पर्क - upasana2006@gmail.com

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