गुरुवार, 21 जुलाई 2016

धूर्त साधु और किसान - दिविक रमेश

धूर्त साधु और किसान... कहानी का अंश... एक था भोलू किसान। सीधा-सादा और ईमानदार। थोड़ी-सी जमीन और दो आम के पेड़ थे उसके। दिन-रात मेहनत करके अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। हर बार की तरह इस बार भी आम के पेड़ों पर बहुत बौर आया था। पेड़ जब कच्ची अमियों से पूरी तरह लद गए तो उन्हें देखकर भोलू किसान और उसका परिवार बहुत खुश हुआ। धीरे-धीरे आम पकने लगे। भोलू ने सोचा, रोज एक टोकरा पके आम भी उतर आए तो उन्हें मंडी में बेचकर वह अच्छे दाम कमा लेगा। एक दिन सुबह जब भोलू किसान अपने परिवार सहित पके आम उतारने के लिए पेड़ों के पास पहुँचा तो देखकर दंग रह गया कि एक भी आम पेड़ पर नहीं था। उसे बहुत दुख हुआ। 'हो न हो, किसी ने आम चुरा लिए हैं। आँधी-तूफान तो आया नहीं कि झड़ जाते। तुम पुलिस में जाकर रपट लिखाओ।' किसान की पत्नी ने उदास होकर कहा। 'ऐसे कैसे रपट लिखा दूँ! मेरे पास कोई सबूत है भी। चलो, अब कल देखेंगे।' भोलू ने पत्नी को झुँझलाते हुए समझाया। अगले रोज भी पके आम गायब थे। अब भोलू को यकीन हो गया कि उसके आम जरूर कोई चुराता ही है। उसने तय किया कि उस रात वह वहीं छिपकर रहेगा और चोर को पकड़ने की कोशिश करेगा। भोलू का शक सही निकला। सुबह-सुबह चार बजे के लगभग वहाँ दो जवान साधु आए और पेड़ों के पास चुपचाप खड़े हो गए। थोड़ी ही देर में उनमें से एक ने पेड़ों की ओर देखते हुए कहा - 'आम आम दो हमको आम क्या हमसे भी लोगे दाम हम साधु हैं कर दो दान बोलो भी कुछ भैया आम कितने ले लें तुमसे आम या फिर कह दो वापस जाओ और लौटकर कभी न आओ।' इतना सुनते ही दूसरे साधु ने तुरंत पहले का कंधा पकड़ते हुए कहा - 'नहीं-नहीं, क्या कहते हो तुम क्यों हम पर पाप चढ़ाते हो तुम जितने चाहे ले लो आम| क्या तुमसे भी लेंगे दाम? ले लो, ले लो, जी भरकर लो पके-पके सब ले लो आम।' आगे की कहानी ऑडियो की मदद से सुनिए...

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