गुरुवार, 7 जुलाई 2016

पंचतंत्र की कहानियाँ - 30 - सच्चे मित्र

सच्चे मित्र... कहानी का अंश... बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर हरे-भरे वन में चार मित्र रहते थे। उनमें से एक था चूहा, दूसरा कौआ, तीसरा हिरण और चौथा कछुआ। अलग-अलग जाति के होने के बावजूद उनमें बहुत घनिष्टता थी। चारों एक-दूसरे पर जान छिडकते थे। चारों घुल-मिलकर रहते, खूब बातें करते और खेलते। वन में एक निर्मल जल का सरोवर था, जिसमें वह कछुआ रहता था। सरोवर के तट के पास ही एक जामुन का बडा पेड था। उसी पर बने अपने घोंसले में कौआ रहता था। पेड के नीचे ज़मीन में बिल बनाकर चूहा रहता था और निकट ही घनी झाडियों में ही हिरण का बसेरा था। दिन को कछुआ तट के रेत में धूप सेकता रहता पानी में डुबकियाँ लगाता। बाकी तिन मित्र भोजन की तलाश में निकल पडते और दूर तक घूमकर सूर्यास्त के समय लौट आते। चारों मित्र इकठ्ठे होते एक दूसरे के गले लगते, खेलते और धमा-चौकडी मचाते। एक दिन शाम को चूहा और कौआ तो लौट आए, परन्तु हिरण नहीं लौटा। तीनो मित्र बैठकर उसकी राह देखने लगे। उनका मन खेलने को भी नहीं हुआ। कछुआ भर्राए गले से बोला 'वह तो रोज तुम दोनों से भी पहले लौट आता था। आज पता नहीं, क्या बात हो गई, जो अब तक नहीं आया। मेरा तो दिल डूबा जा रहा है। चूहे ने चिंतित स्वर में कहा 'हाँ, बात बहुत गंभीर है। ज़रूर वह किसी मुसीबत में पड गया है। अब हम क्या करें?' कौवे ने ऊपर देखते हुए अपनी चोंच खोली 'मित्रो, वह जिधर चरने प्रायः जाता है, उधर मैं उडकर देख आता, पर अँधेरा घिरने लगा है। नीचे कुछ नजर नहीं आएगा। हमें सुबह तक प्रतीक्षा करनी होगी। सुबह होते ही मैं उडकर जाऊँगा और उसकी कुछ खबर लाकर तुम्हें दूँगा।' कछुए ने सिर हिलाया 'अपने मित्र की कुशलता जाने बिना रात को नींद कैसे आएगी? दिल को चैन कैसे पडेगा? मैं तो उस ओर अभी चल पडता हूँ मेरी चाल भी बहुत धीमी है। तुम दोनों सुबह आ जाना।' चूहा बोला 'मुझसे भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठा जाएगा। मैं भी कछुए भाई के साथ चल पड़ता हूँ, कौए भाई, तुम पौ फटते ही चल पड़ना।' कछुआ और चूहा तो चल दिए। कौवे ने रात आँखों-आँखों में काटी। जैसे ही पौ फटी, कौआ उड चला उडते-उडते चारों ओर नजर डालता जा रहा था। आगे एक स्थान पर कछुआ और चूहा जाते उसे नजर आए कौवे ने काँव काँव करके उन्हें सूचना दी कि उन्हें देख लिया है और वह खोज में आगे जा रहा है। अब कौवे ने हिरण को पुकारना भी शुरू किया 'मित्र हिरण, तुम कहाँ हो? आवाज़ दो मित्र।' आगे की कहानी ऑडियो की मदद से जानिए...

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