मंगलवार, 12 जुलाई 2016

गीजूभाई की कहानियाँ - 12 - ठण्डा टपका

ठण्डा टपका... कहानी का अंश... एक बुढ़िया थी। वह एक झोपड़ी में रहती थी। बारिश के दिन थे। पानी बहुत बरसा। बुढ़िया की झोपड़ी में पानी चारों तरफ टपकने लगा और जगह-जगह पानी के गड्ढे भर गए। एक दिन की बात है। रात को एक सिंह बुढ़िया की झोपड़ी के पिछवाड़े छिपकर खड़ा था। उसी समय बुढ़िया के पैर में ठोकर लगने से वह गड्ढे में गिर पड़ी। उसके कपड़े भीग गए। उसे ठण्ड लगने लगी। बुढ़िया बोली: मैं शेर से नहीं डरती। मैं बाघ से नहीं डरती। मैं तो इस ठण्डे टपके से डरती हूँ। बुढ़िया की यह बात सुनकर सिंह सोचने लगा, ‘यह बुढ़िया शेर से नहीं डरती, बाघ से नहीं डरती और ठण्डे टपके से डरती है, तो वह ठण्डा टपका कैसा होगा?’ इतने में बुढ़िया की पीठ पर पानी की एक बड़ी-सी बूँद पड़ी। बुढ़िया परेशान होकर बोली: मैं शेर से नहीं डरती। मैं बाघ से नहीं डरती। मैं तो इस ठण्डे टपके से डरती हूँ। बुढ़िया के मुँह से फिर वही बात सुनकर सिंह घबराया और ठण्डे टपके से बचने के लिए अपनी पूँछ उठाकर जंगल की तरफ दौडा। रास्ते में उसे बरगद का एक पेड़ मिला। एक बन्दर थर-थर काँपता हुआ बरगद की एक डाल पर बैठा था। नीचे, बरगद के तने की आड़ मे, रात में रास्ता भूला हुआ एक मुसाफिर लेटा था। सिंह को दौड़ता हुआ देखकर बन्दर ने पूछा, "सिंह भैया! जंगल के राजा होकर भी आज आप थर-थर काँपते हुए किधर दौड़े जा रहे है?" सिंह ने कहा, "भैया! मैं तो ठण्डे टपके से डर रहा हूं, एक बुढ़िया कह रही थी: मैं शेर से नहीं डरती। मैं बाघ से नहीं डरती। मैं तो इस ठण्डे टपके से डरती हूँ। बुढ़िया की यह बात सुनकर मैं तो अपनी जान लेकर भाग खड़ा हुआ।" सिंह की बात सुनकर बन्दर भी बहुत डर गया। आगे क्या हुआ? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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