सोमवार, 18 मई 2015

अमेरिका जैसा मैंने देखा-भाग 2


डॉ. महेश परिमल
न्यूयार्क एयरपोर्ट पर उतरने के पहले पायलट की आवाज विमान में गूँजी। अबूधाबी एयरपोर्ट पर आप सभी का स्वागत है। यह सुनकर लोग हँसने लगे। इसके बाद पायलट ने तुरंत अपनी गलती सुधारते हुए माफी मांगी और कहा कि न्यूयार्क एयरपोर्ट पर आपका स्वागत है। मेरे लिए एकदम नया अनुभव। मेरा सामान कहाँ होगा? किस हालत में होगा? कहाँ मिलेगा? इसी चिंता में विमान से बाहर आया। सभी यात्रियों के साथ-साथ चलता हुआ मैं उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ एक गोल घेरे में सबका सामान आ-जा रहा था। मैंने ध्यान से देखा कि एक स्थान पर हमारे ही विमान का अगला भाग है, जहाँ से सामान बाहर निकल रहा है और सीधे उस स्थान पर गिर रहा है, जो एक गोल घेरे में है। यात्री उसके चारों तरफ खड़े हैं, जिसका सामान है, वह अपने सामान को पहचान कर उठा लेता। अगर गलत सामान उठाया है, तो फिर उसी स्थान पर रख देता है। यदि किसी के दो बेग हैं, तो आवश्यक नहीं कि दोनों साथ-साथ आएँ। एक बेग मिलने के बाद दूसरा बेग कुछ देर बाद भी मिल सकता है। मेरा ध्यान अपने बेग की ओर था कि पीछे से किसी ने मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए कहा-आखिर आ गए डॉक्टर! मैंने पीछे देखा, तो मेरा मित्र भूपिंदर मेरे सामने था। उसने मुझे भींच लिया, कहो डॉक्टर कैसे हो? मैंने कहा-मैंनू तो चंगा है प्राजी, तुस्सी सुनाओ,  कैसे हो? मैंने भी उसे गले लगाते हुए कहा-प्राजी तुम्हारी जिद थी कि डॉक्टर को अमेरिका आने से कोई रोक नहीं सकता, देखो मैं तुम्हारे सामने हूँ। इसके बाद मैं उनकी पत्नी सुखविंदर से मिला। उनकी बेटी अर्पण को गोद में लिया। भूप्पी ने तुरंत कुछ तस्वीरें लीं। उसके बाद एक विदेशी यात्री से अनुरोध किया कि हम चारों की तस्वीर हमारे मोबाइल में कैद कर दे। उसके बाद मैं अपने बेग को तलाशने लगा, तब तक भूप्पी ने कुछ तस्वीरें फेसबुक में डाल दी। इस बीच मेरे बेग भी मुझे मिल गए। इसके बाद मैं पूरे न्यूयार्क एयरपोर्ट को जी भरकर निहारा। रोशनी से नहाया हुआ एयरपोर्ट, दूर-दूर तक विदेशी यात्री, कुछ भारतीय यात्री भी दिख जाते। मेरी गोद में अर्पण थी, मेरा सामान भूप्पी ने उठाया हुआ था। हम बाहर आए। सामान गाड़ी में रखा। भूप्पी ने कहा-सीट पर बैठो। मैं भारतीय परंपरा के अनुसार अगली सीट पर बैठने जा ही रहा था कि आवाज आई, ओए प्राजी, उत्थे नई, इत्थे। मैं भौचक! तब भूप्पी ने खुलासा किया-डॉक्टर इस देश में लेफ्ट हेंड ड्राइविंग है। तुम उधर बैठो, मैं इधर बैठकर गाड़ी चलाता हूँ। पहली बार मैं उस स्थान पर बैठा, जहाँ भारत में ड्राइवर बैठते हैं। बड़ा अजीब-सा लगा। हमारी गाड़ी चल पड़ी फिलाडेल्फिया की ओर।
रास्ते में भूप्पी ने अमेरिका के बारे में जो कुछ बताया, उसमें पहले तो यातायात के नियमों का जिक्र करना चाहूँगा:-
यहाँ हार्न बजाना प्रतिबंधित है। यदि किसी चालक ने कुछ ही देर में तीन बार गाड़ी का हार्न बजा दिया, तो उसे पुलिस तुरंत डॉक्टर के पास ले जाकर उसका मानसिक परीक्षण करवाती है।
दस वर्ष से कम उम्र्र के बच्चे वाहन की अगली सीट पर नहीं बैठ सकते।
बच्चे को गोद में लेकर कहीं बाहर नहीं निकले सकते। बच्चा हमेशा (स्ट्राॅलर) बच्चा गाड़ी में ही होना चाहिए। इस गाड़ी को चलाने के लिए मॉल या स्टोर्स में विशेष व्यवस्था होती है।
हाइ वे पर ट्रकों के लिए अलग से सड़क होती है। उस सड़क पर कार नहीं जा सकती।
वहाँ कार वाहनों की लाइट दिन में भी ऑन रखी जाती है। वाइपर चल रहा हो, तो लाइट का ऑन होना अनिवार्य है। ये वहाँ का नियम है।
यदि आपने यातायात नियमों का तीन बार से अधिक उल्लंघन किया है, तो आपका लायसेंस रद्द हो सकता है। फिर आपका लायसेंस पूरे अमेरिका में कहीं भी नहीं बन सकता।
पिछले माह ही टेक्सास में गति सीमा से तेज चलाने पर एक व्यक्ति को टिकट मिल गया, वह व्यक्ति थे, जार्ज बुश यानी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति। यानी वहाँ कानून व्यक्ति से ऊपर है।
यातायात नियमों के उल्लंघन के बाद यदि आपने पुलिस वाले को रिश्वत देने की कोशिश की, तो उसे यह अधिकार है कि वह आपको तुरंत िगरफ्तार कर ले। इस संबंध में पुलिसवालों का कहना है कि हमें कानून का पालन करवाने के लिए ही वेतन दिया जाता है। हमें पर्याप्त वेतन मिलता है, फिर हम अपने काम में बेईमानी क्यों करें?
रात के दो बजे भी यदि रेड लाइट है, तो आपको रुकना होगा। भले ही कोई ट्रेफिक न हो।
हर चौराहे पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिससे आपके वाहन के बारे में एक बार में पूरी जानकारी मिल जाती है।
आपके वाहन के आगे यदि कोई स्कूल बस हो और वह आगे जाकर बच्चों को उतारने लगी हो या फिर बच्चों को वाहन में लेने लगी हो, तो आप उस स्कूल बस को किसी भी तरह से क्रास नहीं कर सकते। भले ही ग्रीन सिगनल क्यों न मिल रहा हो। स्कूल बस के चलने पर आप उस वाहन को क्रास कर सकते हैं।
जहाँ जितनी स्पीड तय की गई है, वहाँ उतनी ही स्पीड आपके वाहन की होनी चाहिए। अन्यथा आपको जुर्माना हो सकता है। कई स्थानों पर ऐसी भी मशीन लगी होती है, जिसमें वहाँ की स्पीड लिमिट और आपके वाहन की स्पीड बताई जाती है। यानी आप वाहन स्पीड लिमिट से अधिक तेज चला रहे हैं। ये मशीन केवल आपको सूचित करती है कि आप वाहन की गति को नियंत्रित रखें।
टोल टैक्स देने के लिए वाहन को खड़े नहीं करना होता, वहाँ लगे कैमरे से कार के स्क्रीन पर लगे बिल्ले के नम्बर के मिलान से ही चालक के डेबिट कार्ड से राशि निकल जाती है।
हर 50 या 100 मीटर पर सिगनल होते हैं। इसलिए शहर से बाहर निकलने में ही आधा घंटा लग जाता है। इसके अलावा जिन चौराहों पर सिगनल नहीं लगे हैं, वहां आपको वाहन धीमा करना ही होगा। यातायात हो या न हो, यह नियम हमेशा लागू हाेता है।
चलते-चलते वाहन यदि खराब हो जाए, तो उसे सड़क के किनारे खड़े करने के लिए जगह होती है। वहां वाहन खड़े कर टो वाहन का इंतजार किया जाता है। इस वाहन को आने में अधिक समय नहीं लगता।
जाम की स्थिति बहुत ही कम आती है। बाइक दिखाई नहीं देती। यदि कहीं दिखी भी तो वह हार्ली डेविडसन पर भागते अंग्रेज ही दिखाई दिए।
पार्किंग के लिए अच्छी सुविधा है। जहाँ वाहन पार्क करना है, वहीं एक खंबे पर मशीन लगी है, जहाँ आप नियत समय तक अपना वाहन खड़ा कर सकते हैं, इसके लिए मशीन से ही भुगतान भी हो जाता है। तय समय से अधिक समय तक वाहन खड़ा मिला, तो िफर जुर्माना।
साइकिल के लिए अलग ट्रेक और उसे खड़े करने के लिए अलग से व्यवस्था होती है।
शनिवार-रविवार को साइकिल एवं बाइक किराए पर मिलते हैं। बाइक के लिए अलग से रास्ता होता है। लोग स्केटिंग करते हुए भी तेजी से निकल जाते हैं।
वहां के प्रत्येक पेट्रोल पंप पर एक रेस्टारेंट होता ही है। जहाँ यात्रियों की हर सुविधा का ध्यान रखा जाता है। आप वहां इत्मीनान से नाश्ता कर सकते हैं, फ्रेश हो सकते हैं। भारतीय लोगों के लिए विशेष रूप से शाकाहारी खाद्य सामग्री होती है। पेट्रोल अपने हाथ से ही लेना होता है। कहीं-कहीं वहाँ का कर्मचारी भी देता है। पेट्रोल को वहाँ गैस कहा जाता है। पेट्रोल का आशय वहां पुलिस की पेट्रोलिंग से लगाया जाता है। यह गैलन के हिसाब से मिलता है। वहां लीटर का प्रचलन नहीं है। एक गैलन में करीब तीन लीटर पेट्रोल आता है। पेट्रोल की कीमत में अधिक अंतर नहीं है।
गाड़ियाँ जीपीएस सिस्टम से चलती हैं, जहाँ जाना हो, वहाँ का डेस्टीनेशन फीड कर दिया जाता है, फिर तो जैसा जीपीएस का आदेश होगा, चालक अपना वाहन वहीं ले जाएगा। जीपीएस से यह भी पता चल जाता है कि कितने समय में डेस्टीनेशन तक पहुँचा जा सकता है। कहाँ रास्ता जाम है, कहाँ काम चल रहा है। कौन-सा मार्ग डायवर्सन पर है। ये सारी जानकारी जीपीएस से ही पहले ही मिल जाती है।
पूरे 19 दिनों में मैंने करीब तीन हजार किलोमीटर की यात्रा वाहन से की। पर रास्ते में कहीं भी न तो कोई जानवर देखा, न कोई ठेला वाला और न ही खराब वाहन। यदि वाहन स्टार्ट न हो, तो धक्का नहीं लगाया जाता, बल्कि वाहन में अलग से बैटरी हाेती है, जिसे वाहन की बैटरी से जोड़कर वाहन स्टार्ट किया जाता है। यदि बैटरी नहीं है, तो एक वायर होता है, जिसेे किसी दूसरे के वाहन की बैटरी से जोड़कर अपने वाहन की बैटरी को पावरफुल कर दिया जाता है, फिर अपना वाहन स्टार्ट किया जाता है।
डॉ. महेश परिमल

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