शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

मोदी गरज रहे, शेर मर रहे

 

दैनिक जागरण के राष्‍ट्रीय संस्‍करण में प्रकाशित मेरा आलेख


शेर मर रहे हैं, मोदी गरज रहे हैं
डॉ. महेश परिमल
आमतौर पर देश में साधारण लोगों को अपने पूर्वजों के मोक्ष को लेकर श्राद्ध-यज्ञ कर पाना संभव नहीं हो पाता। वहीं गुजरात में प्रदेश के गौरव समान शेरों की आपदाओं से सुरक्षा व एवं मृतक शेरों व अन्य वन्य प्राणियों के मोक्ष के लिए पिछले दिनों श्राद्ध व कल्याणकारी महायज्ञ आयोजित किया गया। राज्य के जीवदया संगठन प्रकृति नेचर क्लब के दिनेश गिरि गोस्वामी एवं जिज्ञेश गोहिल की अगुवाई में प्रदेश के प्रांची तीर्थ सूत्रापाड़ा में आयोजित शेरों के मोक्ष श्राद्ध व कल्याणकारी महायज्ञ में प्रांची तीर्थ के आचार्य कौशिक पंडया ने मोक्ष यज्ञ का संचालन किया। शेरों की मोक्ष व आपदाओं से सुरक्षा की कामना लेकर आयोजित किए गए अनोखे यज्ञ में नेचर क्लब, प्रांची तीर्थधाम क्षेत्र के सभी गांवों के निवासियों के अलावा राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले दर्जनों प्रकृति प्रेमियों ने शिरकत करके यज्ञ में आहुतियां दीं। इस सन्दर्भ में प्रकृति नेचर क्लब के गोहिल ने कहा कि शेर गुजरात प्रदेश के गौरव हैं। पिछले दो साल में विभिन्न कारणों से लगभग एक सौ शेरों की मौत हो गई। वर्ष 2013-14 में भी राज्य में 41 शेरों की मौत हुई थी। इससे प्रकृति प्रेमियों ने मिलकर इस बार शेरों व अन्य प्राणियों के मोक्ष के लिए श्राद्ध व कल्याणकारी महायज्ञ आयोजित किया गया।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश भर में चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं। गुजरात के शेरों को लेकर वे बड़ी-बड़ी घोषणाएं करते हैं। सिंहों के नाम पर वे अपनी मूंछों पर ताव देते हैं, पर उनके ही गुजरात में सिंहों की स्थिति क्या है, शायद वे इससे अनजान हैं। कुछ दिनों पहले ही जब वे उत्तर प्रदेश में अपने राज्य के सिंहों की स्थिति का बखान कर रहे थे, तब उसी गीर अभयारण्य में दो ¨सहों की मौत वाहनों से कुचलकर हो गई। गुजरात में शेरों की सुरक्षा को लेकर चाहे जितनी भी घोषणाएं की जाए, तो सच तो यह है कि वहां शेरों की स्थिति गली के कुत्तों से भी बदतर है। आज शेरों पर खोखले दावे करने की अपेक्षा उन्हें बचाने की विशेष आवश्यकता है।
झूठ को यदि बार-बार प्रचारित किया जाए, तो भी वह सच का स्थान नहीं ले सकता। इसलिए भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश भर में आम सभाओं को संबोधित करते हुए कितना भी गरज लें कि उनके राज्य में शेरों की बेहतर देखभाल की जाती है। उनका राज्य शेरों को सुरक्षित रखने में सक्षम है। पर हालात इससे अलग ही हैं। आज भी गीर अभयारण्य में शेर सलामत नहंीं हैं। वहां शेरों की मौत लगातार हो रही है। सरकार के सारे प्रयास नाकाफी सिद्ध हुए हैं।
दो महीने पहले ही गुजरात में ही जंगल क्षेत्र से गुजरने वाली मालगाड़ी से दो सिंहनियों की मौत हो गई थी। दिकखने में ये केवल दो मौतें थी, पर वास्तव में कुल पांच मौतें हुई थी। क्योंकि एक सिंहनी के पेैट में तीन शावक अपनी जिंदगी जी रहे थे। मां के साथ वे भी चल बसे। सिंहों की मौत होती रहे और इधर दावे किए जाते रहें कि गुजरात शेरों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखता है। इन दोनों बयानों में विरोधाभास साफ नजर आता है। शेरों को देश की सम्पत्ति मानकर उसकी सुरक्षा भी उसी शिद्दत से की जानी चाहिए, तभी दावे सच के साथ होते हैं। आज उसी गुजरात के गीर अभयारण्य के आसपास इतने अधिक उद्योग स्थापित हो गए हैं कि शेरों को वहां सांस लेने में मुश्किल हो रही है। वे अब सीमाओं के काफी करीब आ गए हैं। इसी सीमा पर एक रेल्वे ट्रेक है। जिसे पापावाव पोर्ट के लिए तैयार किया गया है। पर यह रेल्वे ट्रेक शेरों के लिए काल साबित हो रहा है। शेरों की मौत पर किसी को आश्चर्य नहीं होता। कोई शोकमग्न नहीं होता। शेर मर रहे हैं, मोदी गरज रहे हैं। सरकार पर्यटकों को लुभाने के लिए शेरों के दर्शन करवाती है, पर यह दर्शन शेरों के लिए ही कितना दुखदायी है, इसे समझने के लिए कोई तैयार नहीं है।
जंगल में शेरों को शांति चाहिए, उनकी शांति में किसी प्रकार का खलल न हो, इसलिए वहां अभयारण्य बनाए जाते हैं। पर अब पर्यटन के नाम पर विदेशी लोगों को बुलाने के लिए उन्हें सासण लाया जा रहा है। पब्लिसिटी बटोरने के लिए हजारों लोगों को वहां बुलाया जा रहा है, इससे शेरों के जीवन पर असर पड़ रहा है। लायन शो के नाम पर जंगल के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यटक बुलाए जा रहे हैं, आखिर शेर कब तक इंसानों का दखल सहते रहेंगे? सांसण में इस समय दो दर्जन होटलें चल रही हैं। इन होटलों में हर तरह की सुविधाएं हैं। शेरों के लिए बने इस शांत क्षेत्र का निजीकरण तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस समय यहां के शेर सबसे अधिक असुरक्षित हैं। वन विभाग के फोटोग्राफी और पब्लिसिटी मैनेजमेंट के उस्ताद यहां के शेरों का इस्तेमाल एक उत्पाद की तरह कर रहे हैं। शेरों के दर्शन के लिए जब वीआईपी आते हैं, तब इसका भी ध्यान नहीं रखा जाता कि यह समय शेरों के विश्राम का है। वीआईपी के समय के अनुसार शेरों को सामने लाया जाता है। इसके बाद भी यदि यह कहा जाए कि हम शेरों की देखभाल बहुत अच्छे से कर रहे हैं, तो यह दावा खोखला ही साबित होता है। अभयारण्य के आसपास खेत हैं, इसलिए किसान अपने खेतों की रक्षा करने के लिए बिजली के नंगे तार रख देते हैं, ताकि जानवरों से बचाव हो सके। पर यही नंगे तार शेरों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। जंगल के आसपास खुले कुएं भी हैं, जिस पर रेलिंग नहीं होने के कारण शेरों की मौत हो रही है। बिना रेलिंग के ये कुएं भी शेरों के लिए मौत के कुएं साबित हो रहे हैं। यह गुजरात का सौभाग्य है कि उसके पास एसियाटिक शेर हैं। पर यदि उनकी देखभाल उचित तरीके से नहीं हो पाई, तो यह उनके लिए खतरा ही है। रेल्वे ट्रेक को बंद करना, बिजली के नंगे तारों को हटाना और मौत के कुओं को बंद करना आज की प्राथमिकत आवश्यकता है। इस दिशा में ध्यान देकर शेरों को बचाए रखने में विशेष भूमिका निभाई जा सकती है।
गीर  नेशनल पार्क(राष्ट्रीय उद्यान) 258 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। गीर  अभयारण्य 1412 वर्ग किलोमीटर का है। 411 सिंहों के लिए इतनी जगह बहुत ही कम है। इतनी जगह में केवल 300 सिंह ही रह सकते हैं। इसीलिए शेष सिंह इंसानी बस्ती की ओर रुख करने लगे हैं। सिंहों और इंसानों के बीच संघर्ष के पीछे भी यही कारण है। डार्विन का विकासवाद कहता है, जो जिस स्थान पर अपनी गुजर कर लेता है, वह उस स्थान को अपना ही समझने लगता है। इस दृष्टि से ¨सहों को जंगल से बाहर का वातावरण अच्छा लगने लगा और वे वहीं बसने लगे। यहां आकर वे अपना साम्राज्य स्थापित करने लगे। गीर  के सिंहों से उनका अब कोई वास्ता ही नहीं है। नया स्थान उनके अनुकूल होने के कारण अब उनकी बस्ती भी बढ़ने लगी है। सिंहों की बस्ती बढ़ने से गुजरात सरकार गर्व महसूस कर रही है  और सुप्रीमकोर्ट से तारीख पर तारीख मांग रही है। सरकार यदि वास्तव में सिंहों को बचाना चाहती है, तो उसे स्थान की समस्या को प्राथमिकता के साथ हल करना होगा। जो सिंह जंगल से बाहर हैं, उन क्षेत्रों को भी जंगल की सीमा में ले आए। जहां केवल ¨सह ही रहे, मानव बस्ती को वहां से हटा दिया जाए। यदि अभी इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया, तो संभव है सिंह इंसानी बस्ती में सीधे घुसकर लोगों का शिकार करना शुरू कर दे। अभी इसलिए आवश्यक हे क्योंकि बढ़ते औद्योगिकरण के कारण यह क्षेत्र कहीं उद्योग की चपेट में न आ जाए। सरकार को सुप्रीम कोर्ट का आदेश मान लेना चाहिए। यदि वह कह रही है कि गिर के ¨सहों को मध्यप्रदेश भेज दिया जाए, तो शेरों को मध्यप्रदेश भेज दिया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश जाकर शेरों की वंशवृद्धि ही होगी। इसके लिए श्रेय गुजरात को ही दिया जाएगा। सिंह या शेर या कह लें, बाघ केवल गुजरात की सम्पत्ति नहीं है। उस पर पूरे देश का अधिकार है। भूतकाल में भी गुजरात से सिंह दूसरे राज्यों में भेजे गए हैं। अन्य क्षेत्रों में सिंह नहीं बस पाए, लेकिन गुजरात के गीर में सिंह बस गए और उनकी बस्ती बढ़ने लगी। अब यदि ये दूसरे राज्यों में जाकर अपने लायक माहौल तैयार करें और बस जाएं, तो इसका बुरा क्या है? एक सच्चे पर्यावरणविद की दृष्टि से देखें तो गीर में सिंहों और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़े, इसके पहले उन्हें दूसरे राज्यों में भेज देना चाहिए। यदि हम सचमुच ¨सहों को बचाना चाहते हैं, तो सिंह कहां रहकर बच सकते हैं, इससे बड़ा सवाल यह है कि सिंह बचे रहें। इसके लिए उन्हें दूसरे राज्यों में भेजा जाना आवश्यक है। सभी ¨सह तो गीर से बाहर नहीं जा रहे हैं, केवल पांच-सात सिंह मध्यप्रदेश या किसी और राज्य में भेज दिए जाएं, तो इसमें पर्यावरण का ही लाभ होगा। यदि मध्यप्रदेश से एलर्जी है, तो गुजरात में ही ऐसे स्थानों को विकसित किया जाए, जहां ¨सह रह सकते हों। मूल बात सिंहों के बस्ती के विस्तार की है, यदि वह दूसरे राज्यों में भेजकर हो सकती है, तो भेजा जाना कतई बुरा नहीं है। सिंहों को बचाए रखने का इससे बड़ा दूसरा कोई उपाय नहीं है। गुजरात सरकार को इस दिशा में सोचना होगा। तभी पर्यावरण की रक्षा हो पाएगी।
डॉ. महेश परिमल

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