मंगलवार, 11 जून 2013

अतीत का मोह

डॉ. महेश परिमल
इंसान हमेशा अपने अतीत से कहीं न कहीं जुड़े ही रहना चाहता है। अतीय का यह मोह उसे हमेशा बांधे रखता है। कई बार तो यह हमें बोझ भी लगता है, पर कई बार उसके मोह में पड़कर कई यादें ताजा हो जाती हैं। कुछ इसी तरह से मैं भी अतीत के मोह से जुड़ता चला गया। हुआ यूं कि घर में पुताई का काम चल रहा था, बहुत से चीजें बेकार जानकर फेंकी जा रही थी। सचमुच कई बार हमें लगता है कि इस चीज की अब कतई आवश्यकता नहीं, फिर भी न जाने हम इसे क्यों इतने लंबे समय से संभालकर रखे हुए थे। इस समय घर का बेकार कचरा बाहर निकल ही जाता है। ऐसे में प्लास्टिक के लाफिंग बुद्धा को लेकर पत्नी मेर सामने आई, कहने लगी, इसे फेंक दूं। मैंेने कहा, तुम्हें मालूम है, यह हमें किस तरह से प्राप्त हुआ था। पत्नी ने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की। तब मैंने उसे याद दिलाया कि यह हमारे बच्चे को तीसरी कक्षा में इनाम के रूप में मिला था। जब इसे लेकर वह घर आया, तब शायद तुमने उसके चेहरे की चमक नहीं देखी थी। खुशी से उसका चेहरा चमक रहा था। तुम्हें याद नहीं। पत्नी ने कहा-उससे क्या फर्क पड़ता है, यह चीज पुरानी हो चुकी, उसके बाद घर में कितने ही लाफिंग बुद्धा आ गए हैं। अब इसकी क्या जरुरत? सचमुच उसका महत्व अब घर में नहीं था। जवान हो गए बेटे से पूछा तो उसने भी यही कहा कि मुझे इसकी क्या जरुरत? मुझे नहीं चाहिए, आप उसे फेंक सकते हैं। मैं ठहरा भावना से भरा हुआ। उस लाफिंग बुद्धा को देखते ही मुझे बच्चे के चेहरे की चमक याद आती है।  वैसी चमक फिर कभी नहीं देखी, मैंने बच्चे के चेहरे पर। अब उसे फेंके बिना कोई चारा नहीं।
समझ में नहीं आता कि लोग अपनी उपलब्धियों को इस तरह से क्यों भूलना चाहते हैं। अपने पहले वेतन से आपने जो कुछ भी खरीदा हो, क्या उसे हमेशा के लिए संजोकर नहीं रखना चाहेंगे आप? जिस तरह से पहला प्यार नहीं भुलाया जा सकता, ठीक उसी तरह से कई चीजें हैं, जिसे भुलाना मुश्किल है। जिस साइकिल पर पिता ने माँ को बिठाकर कई बार घुमाया हो, उसी साइकिल को बेटा यदि कबाड़ी को बेच दे, कितना दु:ख होता होगा मां को? इसे आखिर कौन समझेगा? उस साइकिल से कई यादें जुड़ी होती हैं, अपनों की। आज भले ही पिता न हों, पर वह साइकिल हमेशा उनकी याद दिलाती है। पर उसे अपनी आंखों के सामने कबाड़ी ले जाए, तो माँ की हालत क्या होती होगी? इसे न तो कबाड़ी वाला समझ सकता है और न ही उसका बेटा। अपनी खामोश भावनाओं से वह किसे समझाए कि साइकिल बेचना ठीक नहीं है। ठीक है, यदि हर चीज के साथ इसी तरह से भावनाएं जुड़ी रहीं, तो पूरा घर ही भर जाएगा, पुरानी चीजों से। पर ऐसा भी नहीं है। कुछ चीजें तो फेंकने वाली होती ही हैं। जब तक पुरानी चीजें बाहर नहीं जाएंगी, तब तक नई चीजें भी नहीं आ सकतीं। क्योंकि जगह सीमित है और सामान है अधिक। ऐसे में आखिर ऐसा क्या किया जाए, जिससे अतीत की यादें भी जुड़ी रहें, और कबाड़ बाहर भी जाता रहे? अतीत से जुड़ी कई चीजें कई बार उस समय काम आती हैं, जब घर के किसी सदस्य की याददाश्त चली जाए, तो उसे अतीत की याद दिलाने के लिए उसी तरह की चीजें उसके सामने लाई जाली हैं, जिससे वह अपनी यादों को टटोल सके। पर ऐसा आजकल कहां हो पाता है। अब तो लोग अपने अतीत को याद ही नहीं करना चाहते। यदि अतीत सुखद है, तो उससे कुछ लोग निकल ही नहीं पाते हैं, पर यदि दुखद है, तो उसे याद करना भी नहीं चाहते। अतीत के इस भूल-भुलैए में भटककर हम किन कंदराओं से होकर गुजरते हैं, इसे तो वही बताएंगे, जिन्होंने अतीत को अपने भीतर छिपाए रखा है। आखिर लोग एलबम क्यों बनाते हैं। घर के बुजुर्ग की तस्वीर को फ्रेम मे मढ़कर आखिर क्यों रखा जाता है? अतीत वहीं तक अच्छा है, जब तक वह दुखी नहीं करता। दुखी करने वाले अतीत को कोई भी याद नहीं रखना चाहता। पर यदि दुखद अतीत को याद रखा जाए, तो जिंदगी में कितनी भी चुनौतियां सामने आए, इंसान उसका मुकाबला पूरी शिद्दत से कर लेता है। क्योंकि कोई भी नई चुनौती अतीत की चुनौती से बड़ी नहीं होती।
डॉ. महेश परिमल

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