गुरुवार, 9 मई 2013

प्रधानमंत्री के ईमानदार होने के खतरे

डा. महेश परिमल
एक ईमानदार प्रधानमंत्री पूरे देश के लिए कितना घातक होता है, इसे आज के हालात को देखकर समझा जा सकता है। अपनी ईमानदार को बरकरार रखने के लिए प्रधानमंत्री क्या-क्या कर रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। किसी एक के लिए विश्वासपात्र होने के लिए बाकी के साथ आखिर कितनी बार विश्वासघात होगा, इसे कौन समझ सकता है? बार-बार अपनी ईमानदारी का ढोल पीटने से कोई ईमानदार हो नहीं सकता। फिर भी यदि उसे ईमानदार मान ही लिया जाए, तो फिर वह अपनी ईमानदारी को बरकरार रखने के लिए जो हथकंडे अपनाता है, वह कोई ईमानदार कर नहीं सकता। बिलकुल पापड़ की तरह हो गई है आज की केंद्र सरकार। हवा का एक झोंका ही जिसे गिराने में सक्षम हो, ऐसी सरकार को बचाए रखने की अब पूरी कोशिशें हो रही हैं। एक के बाद एक घोटाले उजागर होते रहे हैं, जनता भी त्रस्त आ चुकी है, इन घोटालों से। लेकिन हमारी सरकार भ्रष्ट मंत्रियों को संरक्षण ही देना जानती है। फिर चाहे वे कानून मंत्री हों, या फिर रेल मंत्री। सबको साथ लेकर चलने से आखिर में अकेलेपन के सिवाय कुछ नहीं बचता है।
कर्नाटक में मतदान हुए। कांग्रेस मे यह आशा जागी कि इस बार कर्नाटक फतह कर लिया जाएगा। कुछ एजेंसियों ने कांग्रेस की जीत के आसार भी बताए। पर सरकार इतनी घिरी हुई है कि इसकी खुशी भी नहीं मना पाई। किस किस को जवाब दे। भ्रष्ट नेता और मंत्रियों के बलबूते चलने वाली सरकार का साथ देने वाले भी भ्रष्ट हैं। यदि साथ देने वाले भ्रष्ट नहीं होते, तो वे भी कब का साथ छोड़ चुके होते। सुप्रीमकोर्ट के आगे सरकार का चीरहरण हो रहा है।  कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का मुंह काला हो गया है। उसकी हालत देखने लायक है। फिर भी सरकार को बचा लेने की पूरी ताकत लगा रही है। ऐसे में लगता है कि अब लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने ही वाली है। सरकार और सीबीआई की मिलीभगत अब किसी से छिपी नहीं है। सीबीआई का उपयोग या कहा जाए दुरुपयोग सरकार को चलाने औरबचाए रखने के लिए ही किया जा रहा है। इधर सरकार के खिलाफ यदि मुलायम सक्रिय होते हैं, तो उधर सीबीआई भी उनके खिलाफ सक्रिय हो जाते हैं। सक्रिय को निष्क्रिय करने की एक राजनीतिक साजिश चल रही है। जिसमें सरकार के सभी सहयोगी दल और विपक्ष के सभी सहयोगी दल शामिल हैं।
रेल मंत्री पवन कुमार बंसल के भांजे ने रिश्वत ली, यह सिद्ध हो गया  है। वे रंगे हाथ पकड़े गए हैं। पर चूंकि रेल मंत्री इसमें किसी भी तरह से संलिप्त नहीं है, इसलिए वे इस्तीफा नहीं देंगे। उधर कानून मंत्री कोयला खनन की रिपोर्ट में फेरबदल कर गैरकानूनी कार्य कर रहे हैं, फिर भी सरकार को लगता है कि वे कोई गुनाह नहीं कर रहे हैं। इसके पहले भी जितने घोटाले हुए, उसमें भी संलिप्त मंत्री तब तक बेदाग थे, जब तक उन्हें पूरी तरह से दोषी नहीं बताया गया। अभी भी सरकार अश्विनी कुमार और पवन कुमार वंसल को मंत्री पद से हटाने में कोई गुरेज नहीं है। पर समस्या यह है कि आखिर कितने मंत्रियों को हटाया जाए। विपक्ष तो गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहा है। अगर उक्त दो मंत्रियों को हटा दिया जाए, तो फिर सरकार की साख का क्या होगा? अभी प्रधानमंत्री पद पर डॉ. मनमोहन सिंह गांधी परिवार की पहली पसंद हैं। उनके लिए उनकी ईमानदारी ही पर्याप्त है। इस ईमानदार छवि ने देश को कितना नुकसान पहुंचाया है, यह शायद आरटीआई के माध्यम से भी नहीं जाना जा सकता।
केंद्र सरकार लगातार आरोपों एवं घोटालों से घिर रही है। उसके लिए सीबीआई किसी कठपुतली से कम नहीं है। आज सीबीआई की असलियत सामने आ गई है। इससे यह संदेश गया है कि इसके पहले भी सीबीआई ने जितनी भी रिपोर्ट दी है, वह भी कई प्रश्न चिह्न खड़े करती है। पहले सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो इन्वेस्टिगेशन कहा जाता था, अब वह सिद्ध भी हो गया है। अपने 9 पन्नों के जवाब में सीबीआई ने जो कुछ कहा है, वह देश की सच्ची तस्वीर पेश करता है। शायद इस समय देश की हंसी नहीं उड़ रही होगी। कोयला खनन में घोटाले का मामला इतना अधिक विवादास्पद नहीं हुआ होता, यदि उसमें से प्रधानमंत्री को पूरी तरह से बेदाग बताने का प्रयास नहीं होता। ऐसा प्रयास हुआ, इसीलिए मामले ने तूल पकड़ा। केवल एक ही बात सरकार के पक्ष में जाती है कि सरकार के खिलाफ लड़ने वाले स्वयं भी एकजुट नहीं है। उनमें भी आपस में तनातनी है। इसी का पूरा फायदा उठा रही है, कांग्रेस की यूपीए  सरकार। अब सरकार की सारी ऊर्जा अपने मंत्रियों को बचाने में ही लग रही ह। ऐसे में उनके प्रतिनिधि आम नागरिकों के प्रति किस तरह से जवाबदेह हो सकते हैं। सरकार आम आदमियो के लिए क्या कर रही है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। विपक्ष तो यह कह सकता है कि वह सरकार को जगाने का काम कर रही है। पर सरकार जब तक जागे, तब तक शायद बहुत देर हो जाए। मुलायम-मायावती आखिर कब तक खामोश रहेंगे। उन्हें तो अवसर की तलाश है। केंद्र सरकार के साथ मुश्किल यह है कि घोटाले में जब उनका कोई मंत्री शामिल होता है, तो उसे बचाने का प्रयास करती है, पर जब वह मंत्री सहयोगी दलों को होता है,तो उसे इस्तीफा देने के लिए विवश किया जाता है।
सरकार पर चारों तरफ से दबाव बढ़ रहा है। सरकार पहले अश्विनी कुमार का इस्तीफा लेगी। बंसल का मामला अभी और लटकाया जाएगा। उधर संसद अब तो चलने वाली नहीं है। यह सत्र भी सरकार की नाकामी को छिपाने वाला ही साबित हुआ। कई विधेयक केवल इसीलिए अटके पड़े हैं, पर उसकी चिंता न तो सरकार को है और न ही विपक्ष को। विपक्ष संसद चलने ही नहीं देना चाहती और सरकार भी कुछ ऐसा ही चाहती है। क्योंकि संसद में विपक्ष सरकार पर बुरी तरह से हावी हो जाता है। सरकार को जवाब देते नहीं सूझता। सरकार के लिए आगे के दस महीने बदनामी को झेलने में ही लग जाएंगे। तृणमूल और डीएमके के साथ छोड़ने के बाद सरकार मुलायम-मायावती की छींक से भी हिलने लगी है। ऐसे में बड़े-बड़े घोटालों और मंत्रियों की करतूतों ने सरकार को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। सिख विरोधी दंगों में सज्जन कुमार का बेदाग बच जाना भी लोकसभा के मतदाताओं को नहीं भाया। 84 के दंगों का जवाब सरकार को 2014 में देना ही होगा। सरबजीत की मौत के बाद जिस तरह की राजनीति हुई, उससे तो यही लगता है कि अब सरकार सारा काम वोट को देखते हुए ही कर रही है। सराकर यह भूल रही है कि वह अश्विनी कुमार और पवन बंसल को बचाने का जितना प्रयास करेगी, उतनी ही उसकी बदनामी होगी।
जनता अब यह सबक सिखाना चाहती है कि देश के प्रधानमंत्री को इतना भी अधिक ईमानदार नहीं होना चाहिए कि उसकी ईमानदारी देश के लिए घातक बन जाए। ईमानदार होना बुरा नहीं है, बल्कि ईमानदारी को बचाए रखने के लिए बेईमानी करना बुरा है। आज देश में यही हो रहा है।
डॉ. महेश परिमल

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