शनिवार, 7 अप्रैल 2012

एक चुनौती हैं वी.के. सिंह

डॉ. महेश परिमल
सत्तारुढ़ दल के सामने सेना प्रमुख वी. के. सिंह एक चुनौती के रूप में उभरे हैं। सरकार को यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर सिंह के साथ किस प्रकार का सलूक किया जाए? इस मामले को दबाने के लिए सरकार ने काफी कोशिशें कीं, पर मामला जितना दबाओ, उतना ही उभरकर सामने आ रहा है। इतने समय से सरकार ने विपक्ष के तमाम आरोपों को झेल लिया, काफी हद तक उसका जवाब भी दे दिया, पर वी. के. सिंह के मामले पर वह कुछ कर नहीं पा रही है। सरकार के गृह मंत्री पी. चिदम्बरम पहले गंभीर आरोपों से घिरे, अब रक्षा मंत्री ए. के. एंटोनी भी कई विवादों में घिर गए हैं। ये दोनों सरकार के वरिष्ठ सहयोगी हैं। दस जनपथ से भी इनके संबंध बेहतर हैं। दानों ही महत्वपूर्ण पदों पर हैं। सामान्यत: नागरिकों में वी.के.सिंह को लेकर दो तरह की धारणाएँ काम कर रही हैं। एक वर्गऐसा है, जो उनका समर्थन कर रहा है, दूसरा वर्ग विरोध कर रहा है। विरोध करने वाला वर्ग यह मानता है कि इस समय यदि देश पर कोई हमला कर दे, तो बी.के.सिंह किस तरह से उसका सामना करेंगे? जब उन्हें 14 करोड़ की रिश्वत की पेशकश की गई थी, तो अब तक वे चुप क्यों बैठे रहे? यह वर्ग तो चाहता है कि उन्हें सेना से जो पदक मिले हैं, उसे वापस ले लिया जाए।
सरकार को इस बार वी.के. सिंह की तरफ से कड़ी चुनौती मिली है। अब तक सरकार अपने घटक दलों एवं विरोधियों के तेवरों को भी अपने तर्को से ठंडा कर चुकी है। पर इस बार वह बुरी तरह से फंस गई है। सरकार की कमजोरी विपक्ष के सामने पूरी तरह से सामने आ गई है। इस कमजोरी के चलते अब रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी के इस्तीफे की मांग उठ रही है। सरकार की पूरी कोशिश है कि मामला ठंडा पड़ जाए, इसलिए अब सरकार के संकटमोचक प्रणब मुखर्जी को मैदान में उतारा गया है। उनकी तरफ से यह पूरी कोशिश की जा रही है कि वी.के.सिंह के मामले में कोई भी मंत्री कुछ ऐसा न कहे, जिससे सरकार की मुश्किलें बढ़ जाए। इसके लिए विशेष ताकीद भी की गई है। अब तक सरकार कई मामलों का सामना किया है, पर वी.के.¨सह का मामला जरा पेचीदा होने के कारण सरकार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि वी.के.सिंह के मामले में उसे भारी मशक्कत करनी होगी। सेनाध्यक्ष द्वारा उठाए गए सवालों को सरकार किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं कर सकती थी, इसलिए पहले तो सीबीआई को आगे कर दिया। जाँच की घोषणा कर दी। इसके पीछे उसकी मंशा यही थी कि यह संदेश जाए कि सरकार कुछ भी छिपाना नहीं चाहती। यह तो वी.के.सिंह का सौभाग्य है कि जैसे-जैसे विवाद बढ़ रहा है, वे लोकप्रिय होते जा रहे हैं। अब तक जितने भी सैन्य अधिकारी हुए हैं, उन्हें वी.के. सिंह जितनी लोकप्रियता नहीं मिली। उम्र के विवाद से हाशिए पर चले गए वी.के.सिंह ने जैसे ही यह खुलासा किया कि उन्होंने 14 करोड़ के रिश्वत की पेशकश ठुकरा दी थी, तो देश भर में सन्नाटा पसर गया। इससे बचने के लिए सरकार इधर-उधर भागते नजर आई। वी.के.सिंह को नागरिकों का भी समर्थन मिल रहा है। वैसे भी लोगों में यह आम धारणा है कि सेना के अधिकारी सम्मानीय होते हैं। देश की रक्षा के लिए वे एक पाँव पर खड़े रहते हैं। दूसरी ओर नेताओं से लोगों का विश्वास लगातार उठ रहा है। वी.के.सिंह को सेना के कई अधिकारियों का समर्थन मिल रहा है। फिर भी कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो यह चाहते हैं कि यदि वी.के.सिंह ने गलत किया है, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। इसके लिए यही कहना है कि क्या रिश्वत की पेशकश ठुकराना गलत है, तो निश्चित रूप से उन पर कार्रवाई होनी चाहिए।
इस देश में ऐसा ही होता आया है। यदि नेता करोड़ों का घपला करे, तो भी उस पर आंच नहीं आती। लेकिन कोई दूसरा रिश्वत न ले, तो उस पर कार्रवाई की मांग की जाती है। इस मामले में भी ऐसा होने की पूरी संभावना है। सेनाध्श्क्ष वी.के.सिंह पर किसी भी तरह की कार्रवाई हो सकती है, पर इससे जुड़े नेताओं पर कभी किसी तरह की आँच नहीं आएगी, यह तय है। अब यह कहा जा रहा है कि आखिर सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र लीक कैसे हुआ? इस देश में पहले भी रक्षा घोटाले हुए हैं। इसमें से प्रमुख है बोफोर्स। इस मामले में दोषी किसी भी नेता या अधिकारी को सजा नहीं हो पाई। सेनाध्यक्ष सेना के जिस अधिकारी तेजिंदर सिंह पर आरोप लगाया है, उनका कहना है कि सेनाध्यक्ष एक हताश अधिकारी हैं। अब तो यह तय हो गया है कि जिसने भी सरकार के खिलाफ परचम उठाया, उसे विपक्ष के हाथों का खिलौना करार दिया जाता है। वी.के.सिंह के मामले में भी कुछ ऐसा ही होता नजर आ रहा है। जब वी.के.सिंह की उम्र का विवाद जोरों पर था, तब यह अफवाह उड़ाई गई थी कि अब उन्हें राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के लिए नामांकित किया जाएगा। आज के हालात यही हैं कि यदि सेनाध्यक्ष को बर्खास्त किया जाता है, तो सचमुच विपक्ष राष्ट्रपति पद के लिए एक सशक्त उम्मीदवार मिल जाएगा। इस पर यदि मध्यावधि चुनाव हो जाते हैं, तो कांग्रेस के सामने हार स्वीकारने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचता। सरकार इस बात पर डर रही है कि यदि कहीं वी.के.सिंह ने देश की सुरक्षा के प्रश्न पर कोई नया प्रक्षेपास्त्र फेंक दिया, तो क्या होगा? तय है सरकार लड़खड़ा जाएगी। इसलिए इस मामले में सरकार के सामने चुप रहने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
रक्षा विभाग में जब भी किसी घोटाले की बात उठती है, तो मामला संवेदनशील हो जाता है। प्रजा भी उस दिशा में अधिक सोचने लगती है। आज जब सरकार चारों तरफ से भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है, तब वी.के.सिंह का मामला आग में घी का काम कर रहा है। जब वी.के.सिंह को बर्खास्त करने की माँग प्रबल होने लगी, तब सलाहकारों ने यह कहा कि इस कदम को तो यही कहा जाएगा कि आ बैल मुझे मार। अब यह कहा जा रहा है कि वी.के.सिंह को अवकाश पर भेज दिया जाना चाहिए। सरकार के इस कदम से सरकार को तो कोई लाभ नहीं होगा, पर छबि निश्चित रूप से खराब होगी। ऐसे में यदि वी.के.सिंह अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं और फैसला उनके पक्ष में रहा, तो सरकार की जो किरकिरी होगी, वह और भी शर्मिदगी भरी होगी। सवाल अभी तक वहीं के वहीं है कि वी.के.सिंह ने जो मुद्दा उठाया है, जो सवाल सरकार एवं रक्षा मंत्रालय से पूछे हैं, उसका क्या हुआ? सरकार को उनके सवालों का जवाब देना ही होगा।
   डॉ. महेश परिमल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels