शनिवार, 21 मई 2011

बैकें खुले आम लूट रही हैं उपभोक्ताओं को



डॉ. महेश परिमल

आम आदमी का जो धन बैंकों में जमा है, उसे ही उद्योगपतियों को कम ब्याज में कर्ज के रूप में दिया जा रहा है। इस धन को उद्योगपति अपने मौज-शौक में इस्तेमाल करते हैं। इस कारण मुद्रास्फीति बढ़ती है। यही मुद्रास्फीति जब अधिक हो जाती है, तब रिजर्व बैंक ब्याज दर में .25 या 50 प्रतिशत की वृद्धि कर दी जाती है। आज हमारी बचत पर बैंक जितना ब्याज दे रही है, वह सरासर अन्याय है। अब तो उसकी नजर उस आम आदमी के बचत खाते पर है। अब बैंक लेन-देन शुल्क लेने पर विचार कर रही है। इस तरह से देखा जाए, तो बैंक आम आदमी को लूटने में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती।
हमारी सरकार यदि सचमुच आम आदमी की सरकार है, तो बचत खाते में 10 और फिक्स्ड डिपाजिट पर 15 से 20 प्रतिशत ब्याज मिलना चाहिए। हाल ही में रिजर्व बैंक ने बचत खाते में ब्याज दर में 0.05 प्रतिशत की वृद्धि की है। रिजर्व बैंक द्वारा जब भी रेपो रेट या रिवर्स रेपो रेट में कमी-बेशी की जाती है, तब आम आदमी को यह समझ में नहीं आता कि इससे उसे क्या फर्क पड़ेगा? हाल में रिजर्व बैंक ने रेपो रेट 0.5 प्रतिशत से बढ़कार 7.25 प्रतिशत किया, उसके कारण अर्थ तंत्र की विकास दर 9 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत हो जाएगी। रेपो रेट बढ़ने के कारण विकासदर में आखिर क्यों कमी आएगी? यह आम आदमी की समझ से परे है। इसे समझने के लिए जब गहराई में जाते हैं, तब कई बातें स्पष्ट होती हैं।
भारतीय बैंकों द्वारा आम आदमी से लगातार छलावा किया जा रहा है। पहले बात करें बचत खाते में जमा राशि पर दिए जाने वाले ब्याज की। देश का आम नागरिक अपनी जमा पूँजी बैंकों में बचत खाते में जमा करता है। हम जानते हैं कि देश की तमाम बैंके पिछले 8 वर्षो से बचत खाते में जमा राशि पर प्रति वर्ष 3.5 प्रतिशत ब्याज दिया जाता था। इसका आशय यह हुआ कि यदि हम अपने पसीने की कमाई एक लाख रुपए बैंक में जमा कराएँ, तो एक वर्ष बाद बैंक वर्ष के अंत में केवल 500 रुपए ब्याज के रूप में देती थी। हम सब जानते हैं कि भारत में मुद्रास्फीति की दर 9 से 10 प्रतिशत रहती है, अर्थात एक वर्ष पहले हम जिस चीज को एक लाख रुपए में खरीद सकते थे, एक वर्ष बाद उसी चीज को खरीदने के लिए एक लाख दस हजार रुपए खर्च करने पड़ेंगे। दूसरे शब्दों में एक वर्ष बाद बैंक में जमा हमारा एक लाख रुपया 90 हजार के बराबर हो जाता है। इसमें यदि हम ब्याज के 500 रुपए जोड़ें, तो यह कीमत 93 हजार 500 रुपए होती है। इस तरह से हमें बचत खाते में एक लाख रुपए जमा करने से हर वर्ष 500 रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है। वास्तव में बचत खाते में न्यूनतम ब्याजदर देश के प्रवर्तमान मुद्रास्फीति की दर जितनी होनी चाहिए।
बचत खाते में ब्याजदर कम होती है, तो उसका फायदा और नुकसान किसे होता है, यह समझना अतिआवश्यक है। देश की सभा बैंकों में निवेशकों के करीब 50 लाख करोड़ रुपए जमा हैं। इसमें से करीब 20 प्रतिशत यानी दस लाख करोड़ रुपए बचत खाते में है। यह राशि समाज के गरीब और मध्यम वर्ग की है।3.4 प्रतिशत ब्याज दर के अनुसार आज की तारीख में बैंक बचत खाताधारकों को 35 हजार करोड़ रुपए ब्याज के रूप में देती है। अब इस ब्याज दर में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि किए जाने से खाताधारकों को दी जाने वाली राशि 40 हजार करोड़ रुपए हो जाएगी। अर्थशास्त्र के नियम के अनुसार मुद्रास्फीति की दर की अपेक्षा ब्याज की दर अधिक होनी चाहिए। हमारी बैंकें इस नियम की खुलेआम धज्जियाँ उड़ा रही हैं। इस हिसाब से बचत खातों की ब्याज दर दस प्रतिशत होनी चाहिए।
हमने देखा कि बैंकों द्वारा बचत खाते के खाताधारकों को एक वर्ष में एक लाख करोड़ रुपए ब्याज के रूप में दिए जाने चाहिए। उसके बदले में बंकें केवल 35 हजार करोड़ रुपए ही देती है। इस तरह से आम आदमी को हर वर्ष 64 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। आखिर इसका लाभ किसे मिल रहा है? यह लाभ देश के बड़े उद्योगपतियों एवं कुछ हद तक बैंकों को हो रहा है। बैंक बचत खाताधारकों को मात्र 3.5 प्रतिशत ब्याज देती है, इस कारण रसूखदारों को वह कार खरीदने और उद्योगपतियों को बहुत ही कम दर पर कर्ज देती है। जबकि उनसे दस प्रतिशत ब्याज भी लिया जाए, तो वे देने में सक्षम हैं। गरीबों और मध्यमवर्ग के पसीने की कमाई को कुछ बड़े लोगों को देकर बैंक खूब लाभ कमा रही हैं। गरीबों के धन से विकास हो रहा है और गरीबों का ही शोषण हो रहा है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने जब रेपो रेट में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की, तब यह भी कहा था कि ब्याज दर में वृद्धि के कारण भारत के अर्थतंत्र का विकास 9 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत हो जाएगा। रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को ब्याज की जिस दर पर कर्ज दिया जाता है, उसे रेपो रेट कहते हैं। आज की तारीख में यह रेपो रेट 6.75 प्रतिशत है। इसे बढ़ाकर 7.25 प्रतिशत किया गया है। बैंक द्वारा लोगों को जो कर्ज दिया जाता है, उसके रेपो रेट में अपना मुनाफा निकाल लेती है।
रिजर्व बैंक द्वारा जब भी रेपो रेट में वृद्धि की जाती है, तब बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण की दर में भी अनिवार्य रूप से वृद्धि होती है। रेपो रेट में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि की जाती है, तब बैंकों द्वार दिए जाने वाले लोन की दर में 0.5 से 1 प्रतिशत जितनी वृद्धि होती है। ब्याज के दर में एक प्रतिशत की वृद्धि होने से क्या फर्क पड़ता है? यह सवाल भी कई लोगों को सताता होगा। हमने पहले ही बता दिया है कि बचत खातों में करीब 50 लाख करोड़ रुपए जमा हैं। इस राशि से यदि बैंक बड़े लोगों को दस प्रतिशत की दर से कर्ज दे, तो यह राशि प्रतिवर्ष 5 लाख करोड़ रुपए जितनी होती है। यदि ब्याज की दर में एक प्रतिशत की वृद्धि की जाए, तो उद्योगपतियों और रसूखदारों को उनके व्यापार व्यवसाय के विकास के लिए ब्याज पर कर्ज दिया जाता है, तो इस डिपाजिट पर दस प्रतिशत ब्याजदर वसूला जए, तो 5 लाख करोड़ रुपए अधिक प्राप्त हो सकते हैं। यदि उनके लिए ब्याज दर में एक प्रतिशत का भी इजाफा किया जाए, तो यह रकम उद्योगपतियों और रसूखदारों को हर साल 50 हजारा करोड़ रुपए अधिक चुकाने होंगे।
2010 के मार्च महीने में रेपो रेट 5 प्रतिशत ही था। उसमें पिछले 14 महीनों में 8 बार वृद्धि की गई। अभी रेपो रेट 7.25 प्रतिशत किया गया है। इससे बैंक से कर्ज लेने वालों पर करीब 2.25 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि की गई। ब्याज दर बढ़ती है, तो उद्योगपति स्वाभाविक रूप से बैंक से लोन लेकर नए उद्योगों के विकास की गति धीमी कर देते हैं, इसलिए विकास दर में भी कमी आती है। रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में कमी-बेशी करने का असर आम आदमी और उद्योगपतियों पर किस तरह होता है, यह भी समझने लायक है। रेपो रेट में वृद्धि होती है, तब बैंको के फिक्स्ड उिपाजिट की दरों में उस अनुपात में वृद्धि करना अनिवार्य हो जाता है। आज से 14 महीने पहले जब रेपो रेट 5 प्रतिशत था, तब बैंकों के फिक्स्ड डिपाजिट के ब्याज की दर करीब 6 प्रतिशत के आसपास थी। अब रेपो रेट बढ़कर 7.25 प्रतिशत हो गई है, तो फिक्स्ड डिपाजिट की ब्याज दर बढ़कर 9 से 10 प्रतिशत हो गई है। इस तरह से रसूखदारों को मिलने वाला कर्ज महँगा हो जाता है और गरीब और मध्यम वर्ग को उनकी जमा पूँजी पर अधिक ब्याज मिल रहा है। बैंकों के फिक्स्ड डिपाजिट में धन जमा करने वाले अधिकांश नौकरीपेशा, पेंशनर और विधवाएँ होती हैं। इनका घर ब्याज की आवक से चलता है। इन लोगों द्वारा करीब 40 लाख करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपाजिट के रूप में बैंकों में जमा किए गए हैं। बैंक इन्हें केवल 9 से 10 प्रतिशत ब्याज देती है। देश में जिस तरह से मुद्रास्फीति बढ़ रही है, उसे देखें, तो स्पष्ट होगा कि इन्हें मिलने वाला ब्याज शून्य हो जाता है।
बैंकों में लोगों द्वारा अपनी बचत फिक्स्ड डिपाजिट के रूप में जमा कराए जाते हैं, उसके अनुपात में रसूखदारों को कार खरीदने और उद्योगपतियों को नए कारखाने के लिए कम दर पर कर्ज दिया जाता है, इस कारण ऐसा कहा जाता है कि देश का विकास तेजी से हो रहा है। इस तरह से जो विकास होता है, उसमें आम आदमी को भारी नुकसान होता है और रसूखदारों-उद्योगपतियों को खूब मुनाफा होता है। इस कार्य में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक दलाल की भूमिका निभाती है। इसे यदि सरल भाषा में कहें, तो केंद्र सरकार, रिजर्व बंक और देश की अन्य बैंकें रेपो रेट के नाम पर आम आदमी के पसीने की कमाई को सस्ते में लेकर रसूखदारों और उद्योगपतियों मुफ्त के भाव कर्ज के रूप में दे रही है। इस पूँजीनिवेश में से उद्योगपति जो कमाई करते हैं, उसे देश का विकास कहा जाता है। कम ब्याज दर में कर्ज लेने वाले रसूखदार जी खोलकर खर्च करने की छूट मिल जाती है, इस कारण मुद्रास्फीति बढ़ती है। इसका सबसे अधिक असर आम आदमी पर पड़ता है। जब मुद्रास्फीति काबू से बाहर होने लगती है, तब रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज की दर में .25 या .5 प्रतिशत की वृद्धि कर दी जाती है, इससे लोग खुश हो जाते हैं। वास्तव में इस तरह से तमाम बैंकें आम आदमी को लूटने में लगी हैं। इसमें केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक की मिलीभगत भी है।
डॉ. महेश परिमल

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