बुधवार, 16 मार्च 2011

छवि साफ करने वाली जेपीसी की पेचीदगियाँ

डॉ. महेश परिमल
टेलीकॉम घोटाला हमारे देश के लिए एक ऐसा काला अध्याय है, जिससे यह साबित होता है कि अपने आसपास होने वाली अव्यवस्थाओं से किस तरह से आँख बंद की जा सकती है। बाद में इस अपनी भूल करार दिया जाए। कोई व्यक्ति बार-बार भूल करे और अपनी सफाई देता रहे, फिर भी हमें वह स्वीकार्य है। इससे अधिक दुर्दशा आखिर किसकी होगी? बस यही हाल है देश के आम नागरिकों का। अपने पसीने की कमाई को वह कर के रूप में चुकाता है, जिसे बड़े-बड़े लोग आसानी से पचा जाते हैं। इतिहास गवाह है कि आज तक देश के किसी भी नेता को आर्थिक घोटाले में इतनी बड़ी सजा नहीं हुई कि दूसरे उससे सबक ले सकें।
अब जेपीसी के गठन की बात ले ले, पिछला संसद सत्र पूरी तरह से विपक्ष की यही एकमात्र माँग की बलि चढ़ गया। इसके लिए विपक्ष से अधिक तो सत्तारुढ् दल दोषी है। जब जेपीसी की माँग माननी ही थी, तो पहले क्यों नहीं मानी गई? अब मानने से संसद सत्र के दौरान हुए करोड़ों रुपए और मानव श्रम को तो आँका ही नहीं जा सकता और न ही उसके घाटे की आपूर्ति की जा सकती है। इसके बाद भी स्थिति में किसी प्रकार का सकारात्मक अंतर आएगा, इसके लिए दावा नहीं किया जा सकता। यह सच है कि टेलीकॉम घोटाले में लिप्त कई कंपनियाँ इतनी अधिक शक्तिशाली हैं कि वह जेपीसी तो क्या, भारत सरकार को ही खरीद सकती है।
जेपीसी की माँग मानकर सरकार यह सोच रही होगी कि इस तरह से वह जनता की सहानुभूति प्राप्त कर सकती है। पर वह गलत है। सरकार ने जब जेपीसी की माँग स्वीकार की, तब भी सहानुभूति विपक्ष के साथ ही थी। हालांकि इसके बाद विपक्ष मदमस्त हाथी की तरह हो गया। वह अपनी ही पीठ थपथपा रहा है कि आखिर हमने सरकार को झुकने के लिए विवश ही कर दिया। दूसरी ओर जनता को अब समझ में आ रहा है कि उसे छला गया है।
जब से 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया है, तब से मीडिया को मानो अलादीन का चिराग ही हाथ लग गया है। वह जब चाहे इसका उपयोग, दुरुपयोग करती रही है। जब बात काफी बढ़ गई, तब सुप्रीमकोर्ट ने सीबीआई को यह आदेश देना पड़ा कि इस कांड पर जितनी जल्दी हो सके, पर्दा उठाया जाए। यह अच्छी बात है कि ए. राजा अब जेल में हैं, पर उनके अलावा अभी बहुत से लोग ऐसे हैं, जो पूरी सरकार को खरीदने की फिराक में हैं। ताकि इस पूरे कांड पर पर्दा डाला जा सके। अभी एक नहीं पूरे 63 लोग सीबीआई के निशाने पर हैं। उनसे ही पता चलेगा कि आखिर इतना बड़ा कांड कैसे हो गया और कौन-कौन इसमें शामिल है? नागरिकों को अब जेपीसी की रिपोर्ट का इंतजार है।
हमारे देश की संसदीय कार्यप्रणाली में जेपीसी को किसी भी मामले की जाँच करने के लिए बहुत ही अधिक अधिकार दिए गए हैं। इस अधिकार का उपयोग करके जेपीसी सरकारी दस्तावेज में छिपे कई निजी रहस्यों को भी जान सकती है। यही नहीं, इससे संबंद्ध लोगों से बातचीत कर उनके खिलाफ भी जाँच शुरू कर सकती है। यही कारण है कि अब जेपीसी के हाथ में टेलीकॉम घोटाले से संबद्ध अनेक चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल सकती हैं। जेपीसी की सारी कार्यवाही बहुत ही गोपनीय तरीके से चलती है। नागरिकों को तो इसकी जानकारी तक नहीं होती। कई महीनों बाद जब संसद में जेपीसी की रिपोर्ट सामने आती है, तब कुछ जानने को मिलता है। वैसे भी जेपीसी की इस रिपोर्ट में कई बातें सुरक्षा की दृष्टि से गोपनीय रखी जाती हैं। वैसे कुछ स्वयंसेवी संस्थाएँ अभी से इस दिशा में तेयारी कर रहीं हैं कि सूचना के अधिकार के चलते जेपीसी की मूल रिपोर्ट सबको लिए सुलभ हो।
सीबीआई ने हाल ही में सुप्रीमकोर्ट को दी गई रिपोर्ट में बताया है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में शामिल सभी 63 लोगों पर उसकी नजर है। इन 63 लोगों में भूतपूर्व संचार मंंत्री ए. राजा तो जेल में हैं। इसके अलावा टेलीफोन कंपनियों के 10 उच्चधिकारी या डायरेक्टर भी शामिल हैं। इधर केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट से कहा है कि वह इस मामले के शीघ्र निबटारे के लिए विशेष अदालत के गठन की दिशा में सोच रही है। सच्चई यह है कि कानून के अनुसार दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने एक पत्र लिखकर विशेष अदालत के लिए न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रार्थनाकी है। स्पेक्ट्रम घोटाले में अनेक रसूखदारों की धरपकड़ होने की पूरी संभावना है। इस आशय की पूरी जानकारी नागरिकों के सामने रखी जाएगी, ऐसी आशा की जा सकती है।
किसी भी घोटाले की जाँच के लिए जब भी जेपीसी की रचना की जाती है, तब उसकी जाँच को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई चालाकियाँ की जाती हैं। बड़े उद्योगपति तो जेपीसी के सदस्यों को अपने पाले में लेने के लिए उन्हें मोटी रिश्वत भी देते हैं। जेपीसी में ऐसे सांसदों को शामिल किया जाता है, जो भूतकाल या वर्तमान में एक या एक से अधिक उद्योगों से जुड़े होते हैं। हाल ही में कांग्रेस के मनु अभिषेक सिंघवी ने भूतकाल में टेलीकॉम कंपनियों के वकील के रूप में काम करने के कारण जेपीसी में काम करने में अपनी अनिच्छा जताई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जेपीसी में भी पर्दे के पीछे अनेक खेल खेले जाते हैं। ऐसा न हो, इसलिए जेपीसी की कार्यवाही को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। यदि नागरिकों को जाँच की प्रगति रिपोर्ट से वाकिफ न कराया जाए, तो इसमें होने वाले खेल की संभावना ही खत्म हो जाएगी।
जेपीसी की कौन-सी जानकारी घोषित की जाए या नहीं, इसके लिए हमारे देश में अभी तक कोई कानून नहीं बना। जेपीसी की रचना संसद द्वारा की जाती है और संसद के दोनों सदनों के नेता जेपीसी की कार्यवाही की देखरेख करते हैं। जेपीसी की कार्यवाही की कितनी जानकारी घोषित करनी चाहिए, इस बारे में निर्णय भी संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष ले सकते हैं। सामान्य रूप से जेपीसी की बैठक हर सप्ताह होती है। इसके बाद जेपीसी के अध्यक्ष पत्रकारा वार्ता को संबोधित करते हैं। इसमें उन्हें यह बताना होता है कि जेपीसी ने अब तक कितनी दूरी तय की है। दूसरी ओर जेपीसी के सदस्य भी न जाने कितनी गोपनीय जानकारियाँ लीक कर देते हैं। इसमें उनका निजी स्वार्थ होता है। इस तरह से जेपीसी की आड़ में क्या हो रहा होता है, यह नागरिकों का पता ही नहीं चलता। यदि जेपीसी की तमाम जानकारियों की घोषणा कर दी जाए, तो पर्दे के पीछे होने वाले खेलों पर अंकुश लग सकता है।
भाजपाध्यक्ष नीतिन गडकरी ने हाल ही में यह आक्षेप किया है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए. राजा को बलि का बकरा बनाया गया है। सरकार असली अपराधी को संरक्षण दे रही है। गडकरी के आक्षेप के अनुसार 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में जो पहले आएगा, पहले आओ, पहले पाओ, का निर्णय केंद्र की केबिनेट ने लिया था। वास्तव में पहले आओ, पहले पाओ की नीति तो एनडीए के शासनकाल में तैयार की गई थी। तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। जेपीसी ने 1998 के बाद स्पेक्ट्रम के वितरण की जाँच का काम सौंपा गया था। इसमें एनडीए शासन विशेषकर स्व. प्रमोद महाजन जब दूरसंचार मंत्री थे, तब हुए घोटाले भी बाहर आने की संभावना है। इन हालात में संभव है कांग्रेस और भाजपा दोनों ही चुप्पी साध लें और जेपीसी की सारी रिपोर्ट दबा दें। इसी को ध्यान में रखते हुए सूचना का अधिकार के तहत जेपीसी की एक-एक बात को जनता के सामने रखने की माँग अरविंद केजरीवाल ने की है।
ऐसा लगता है कि 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में शामिल तमाम दल कुछ न कुछ छिपाना चाहते हैँ। नीरा राडिया की रतन टाटा के साथ हुई बातचीत का टेप जारी हुआ, तब रतन टाटा हतप्रभ रह गए। तब इस टेप को जारी होने से अटकाने के लिए उन्होंने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अब इस घोटाले की कई कड़िया सामने आने लगी हैं, तो टाटा के वकील हरीश साल्वे ने सुप्रीमकोर्ट से विनती की है कि इस मामले की सारी गोपनीय जानकारियों को किसी भी तरह से बाहर न आने दिया जाए। उन्हें यह आशंका है कि यदि इसी तरह गोपनीय जानकारियाँ बाहर आती रहीं, तो न जाने कितने चेहरे बेनकाब हो सकते हैं। कई संवेदनशील सूचनाएँ भी बाहर आ सकती हैं। हरीश साल्वे का इशारा निश्चित रूप से नीरा राडिया के टेप की ओर था। इस टेप में ऐसी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ हैं, जो यदि सार्वजनिक होती हैं, तो कई सफेदपोश बाहर आ सकते हैं।
सीबीआई ने सुप्रीमकोर्ट को जानकारी दी है कि वह अभी 10 टेलीकॉम कंपनियों को सामने रखकर जाँच कर रही है। वैसे सीबीआई ने अदालत को कोई नाम नहीं सौंपा है, पर अभी तक स्वान, यूनिटेक, रिलायंस कम्युनिकेशन, टाटा टेली सर्विस, लूप, डेटाकॉम (विडियोकॉन), एस टेल, सिस्टेमा, श्याम और एस्सार जैसी बड़ी कंपनियों के स्पेक्ट्रम घोटाले में मिलीभगत पर जाँच कर रही है। इसे सभी जानते हैं। इन कंपनियों में कई ऐसी कंपनियाँ हैं, जो न केवल जेपीसी के सदस्यों बल्कि पूरी सरकार को खरीद सकती हैं। वास्तव में मनमोहन सरकार की कमजोरी के चलते ही ये कंपनियाँ इतना बड़ा घोटाला करने में सक्षम हो पाई। अपनी इज्जत बचाने के लिए ये कंपनियाँ कुछ भी कर सकती हैं। किसी भी हद तक जा सकती हैं। इस पर रोक तभी लग सकती है, जब तक जेपीसी की एक-एक बातों का खुलासा होता रहे, नागरिकों का एक गैरराजनीतिक सदस्य जेपीसी सदस्यों के कार्यो का निरीक्षण करता रहे, तो न केवल जेपीसी, बल्कि नागरिकोंे को भी अपनी धारणा बनाने में अच्छा लगेगा।
भारत में सचमुच यदि प्रजातंत्र है, तो नागरिकों से किसी बात को छिपाना नहीं चाहिए। प्रजातंत्र की अलख को जगाए रखने के लिए ही सूचना का अधिकार कानून लाया गया है। इस कानून के दायरे में सीबीआई और जेपीसी को भी लाना चाहिए। राजनेता और उद्योगपति इस देश को किस तरह से लूट रहे हैं, इसकी जानकारी देश के एक-एक नागरिकों को होनी चाहिए। प्रजा की इच्छा को सर माथे चढ़ाना ही होगा, तभी सरकार अपने को बेदाग साबित कर पाएगी। वैसे भी यह सभी जानते हैं कि जिस सरकार ने जेपीसी की रचना की, वह सरकार बच नहीं पाई है। राजीव गांधी ने बोफोर्स मामले पर जेपीसी से जाँच कराना स्वीकार किया था। उस समय भी विपक्ष को कुछ ऐसा ही संघर्ष करना पड़ा था। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी की हार हुई थी। इसके बाद स्टाक मार्केट कांड में नरसिम्हा राव ने भी जेपीसी की माँग स्वीकार की थी, उसके बाद वे भी चुनाव हार गए। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह जेपीसी के अध्यक्ष थे। इसीलिए वे अच्छी तरह से जानते हैं कि जेपीसी से सरकार को क्या नुकसान हो सकता है। इसी तरह अटल बिहारी वाजपेयी ने भी जेपीसी के बाद चुनाव हार गए थे।
डॉ. महेश परिमल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels