मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

विदाई की बेला में महाराजा!


डॉ. महेश परिमल
बात सन् १९७८ की है, जब एयर इंडिया के बोर्ड से जे.आर.डी. टाटा को बाहर कर दिया गया था। उस समय उनकी आत्मा बहुत रोई थी। एयर इंडिया को उच्च स्थान दिलाने के लिए उन्होंने जो कुछ किया, उसे बताने की आवश्यकता नहीं है। एक समय एयर इंडिया का नाम पूरे विश्व में सम्मानपूर्वक लिया जाता था। आज उसकी प्रतिष्ठा लगातार रसातल में जा रही है। दिनों-दिन उसकी आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है। आज यह देखकर जेआरडी की आत्मा को और भी अधिक दु:ख हो रहा होगा। उनके हाथों से पल्लवित और पुष्पित होती विशालकाय इमारत अब ढहने वाली है। काश इसका नाम ऊँचा उठाए रखने की ईमानदाराना कोशिशें होतीं।
१९४८ में जब जेआरडी ने एयर इंडिया इंटरनेशनल की शुरुआत की, तब उनका यह सपना था कि एयर इंडिया को एक श्रेष्ठ विमान कंपनी का दर्जा मिले। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने कई प्रयास भी किए। उनके ही प्रयासों ने एयर इंडिया ने समय की पाबंदी का अपनी पहचान बनाई। एक समय ऐसा भी था, जब एयर इंडिया के विमानों से लोग अपनी घड़ी मिलाते थे, उसकी विश्वसनीय पर किसी को भी आपत्ति न थी। पर अब उसी एयर इंडिया का सूर्य अस्ताचल की ओर बढ़ रहा है। इन दिनों वह भयंकर आर्थिक परेशानियों से गुजर रहा है। इस वर्ष उसे ५५०० करोड़ का घाटा हुआ, पिछले वर्ष उसे ७२०० करोड़ का घाटा हुआ था। अपना बाजार मूल्यों बढ़ाने के लिए वह भरसक प्रयास कर रहा है, पर उसमें उसे सफलता नहीं मिल रही है। अक्टूबर में उसका बाजार हिस्सा १८.६ प्रतिशत था। सितम्बर में उसका बाजार हिस्सा १७.५ प्रतिशत और अगस्त में १६.६ प्रतिशत था। इतना ही नहीं, एयर इंडिया के संचालकों ने मार्च २०१० में और ५ हजार करोड़ का घाटा होने की आशंका जता चुके हैं। इसी कारण कंपनी के कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की आर्थिक लाभ नहीं दिया जा रहा है।
एयर इंडिया की आर्थिक स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। यही नहीं एयर इंडिया के विमान सेवा की स्थिति में लगातार गिरावट आ रही है। ४ सितम्बर को एयर इंडिया की ८२९, बोइंग ७४७-४०० के इंजन में आग लग गई थी। यह आग तब लगी, जब विमान उड़ान के लिए तैयार था। तब उसके पंख में आग की लपटें देखीं गईं। जब एक यात्री का ध्यान उस ओर गया, तब उसने केबिन क्रू को इसकी जानकारी दी। इससे पायलट ने तत्काल एयर ट्राफिक कंट्रोलर को सूचना दी। इससे अग्निशमन का एक दल तुरंत वहाँ पहुँचा और आग पर काबू पाया। इस दौरान सभी यात्रियों एवं केबीन क्रू को इमरजेंसी एक्जिट विंडो से बाहर निकाला गया। कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर नहीं मिल रहा है। पहला तो यही कि आग क्यों लगी? आखिर क्यों दार्यी तरफ, जहाँ एक इंजन में आग लगी थी, तो एक्जिट विंडो का उपयोग क्यों किया गया? क्रू की तरफ बायीं ओर की एक्जिट विंडो को क्यों नहीं खोला गया?
यदि इस विमान ने उड़ान भर ली होती, तो क्या होता? आप कहेंगे कि विमान टुकड़े-टुकड़े हो जाता और उसके परखच्चे उड़ जाते। वास्तविकता यह है कि यदि यह आग विमान के उड़ान भरने के बाद लगी होती, तो उस आग पर नियंत्रण पाया जा सकता था। विमान जब उड़ता रहता है और उसमें आग लग जाती है, तो इमरजेंसी ड्रील चालू हो जाता है। इससे प्रभावित इंजन धीमा हो जाता है, उसे ईंधन मिलना बंद हो जाता है। इससे आग थोड़ी ही देर में अपने आप बुझ जाती है। आज तक ऐसी एक भी घटना नहीं हुई, जिसमें उड़ते विमान में आग लगी हो और इमरजेंसी ड्रील ने न बुझाई हो। सभी विमानों में आग बुझाने के संसाधन होते हैं, लेकिन इस मामले में रहस्य अभी तक नहीं खुल पाया है। एक जनवरी २००९ को मदीना से कुआलालम्पूर जाने वाले ४४२ सऊदी अरब के एयरलाइंस बोइंग ७४७-१६८ बी के उड़ान भरने के तुरंत बाद चार नम्बर के इंजन में आग लग गई। विमान के क्रू ने आग पर काबू पाने की कोशिश की थी। विमान मदीना लौट आया। विमान के सभी यात्रियों को पूरी सतर्कता से बाहर निकाल लिया गया। २७ जुलाई २००९ को एयर फ्रांस की एयर बस ३४०-३०० ने बोस्टन के हवाई अड्डे से उड़ान भरने के बाद उसके चार नंबर इंजन में आग लग गई। पायलट से सूझबूझ के साथ आग बुझाई और २५ मिनट के बाद ही विमान फिर से बोस्टन एयरपोर्ट पर था। इस तरह से विमान के इंजन में आग लगने की कई घटनाएँ हो चुकी हैं। फिर भी आग पर काबू पाया गया है और विमान को सुरक्षित एयरपोर्ट तक लाया गया है। प्रशिक्षण प्राप्त क्रू के सदस्य इस प्रकार के हालात पर काबू पाने के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं। दूसरी ओर हवा में उड़ते विमान में यदि आग लग जाए, तो आग बुझाने के लिए किसी चमत्कार की राह देखने की आवश्यकता नहीं है।
हाल ही में एयर इंडिया के ८२९ विमान में लगी आग के कारणों का खुलासा किया गया, इसके तथ्य गले नहीं उतरते। कंपनी के प्रवक्ता ने यह दावा किया है कि मात्र ३० सेकेंड में विमान को खाली करने में सफलता मिल गई। इस दौरान सभी यात्रियों और क्रू के सदस्यों को सुरक्षित बाहर निकालने के बाद दायीं तरफ का दरवाजा खोल दिया गया था। एमआईएएल के प्रवक्ता ने कहा कि विमान में कोई है, तो नहीं, इसकी जाँच के लिए अग्निशमन का एक कर्मचारी विमान के अंदर गया था। उसी ने हवा के आने-जाने बायीं तरफ का दरवाजा खोल दिया था। यह बात इसलिए गले नहीं उतरती कि मौसम विभाग का कहना है कि जब यह घटना घटी, तब ३१० डिग्री से ५ नॉट की तेजी से हवा चल रही थी और बारिश भी हो रही थी। यदि दायीं ओर का दरवाजा खोला गया, तो धुआँ या आग की ज्वाला केबिन में प्रवेश कर जाती। पर यात्रियों के अनुसार केबिन में आग या धुएं की गंध नहीं थी। इससे स्पष्ट होता है कि एयर इंडिया विमान की खामियों को छिपाने की कोशिश कर रहा है।
पिछले २ वर्षों में एयर इंडिया की इस तरह के अनेक दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं। इन सभी की जाँच चल रही है। हम सभी जानते हैं कि ये जाँच प्रक्रिया कभी पूरी होने वाली नहीं है। इन्हीं कारणों से जेआरडी टाटा की विमान कंपनी आज रसातल में जा रही है। ७ दिसम्बर २००७ को एयर इंडिया का विमान एआई ७१६ दुबई से मुंबई आने के लिए रवाना हुआ, पर हवा में एक घंटे तक उड़ान भरने के बाद वह वापस दुबई आ गया। जानना चाहेंगे क्यों? एक यात्री का सामान विमान में नहीं चढ़ पाया था, इसलिए। सोचो यह कितनी बड़ी भूल है? सुरक्षा की दृष्टि से यह कितनी बड़ी लापरवाही कहा जाएगा इसे? २६ फरवरी २००८ के एयर इंडिया की दिल्ली से श्रीनगर जा रहे एयर बस ३२१ का इंजन टेक ऑफ के बाद ही बंद हा गया। विमान को फिर से लौटना पड़ा। आश्चर्य की बात यह है कि अभी ६ महीने पहले ही उस विमान को खरीदा गया था। १६ मई २००८ को एयर इंडिया का एकदम नया विमान २२७ खड़ा था। इंजीनियर विभाग के कर्मचारी विमान के उड़ान भरने के पूर्व की जाँच कर रहे थे। विमान उडऩे के दो घंटे पहले ही उसका अगला चक्का निकल गया। जो इंजीनियर विमान के अगले भाग में काम कर रहा था, वह बड़ी मुश्किल से बच पाया। ४ जून २००८ को तो हद ही हो गई। एआई ६१२ विमान रात को दुबई-दिल्ली-जयपुर-मुंबई के रुट पर था। उस समय कुछ मिनटों के लिए विमान के दोनों पायलट सो गए थे। पर कंपनी इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। भारतीय समयानुसार रात के ८.०९ थी ८.५६ तक यह विमान एयर ट्राफिक के कंट्रोल रुम के साथ संपर्क में नहीं था। यही नहीं उसके आसपास मंडराने वाले विमान द्वारा भेजे गए संदशों का भी इस विमान से कोई जवाब नहीं आया। यह विमान मुंबई से ४३ नॉटिकल मील (८० मील) आगे निकल गया था। यह तो अच्छा हुआ कि कोई दुर्घटना नहीं हुई, यह होती, तो एक भी यात्री नहीं बचता। ७ नवम्बर २००९ को जेद्दाह से कोजीकोड की एयर बस ए-३१० जब तेज गति से नीचे उतर रहा था, तब उसका पंख रनवे से टकरा गया और उसमें आग लग गई थी। यात्रियों के हलक सूख गए थे। एयर लाइंस ने इस घटना को सामान्य दुर्घटना बताया। इसी तरह की दुर्घटना ९ मार्च २००९ को नारीता विमानतल में भी हुई थी। इसमें दो पायलट और एक यात्री की मौत भी हुई थी।
इस तरह से आए दिनों यह सुनने में आता ही रहता है कि एयर इंडिया की अमुक फ्लाइट में यह लापरवाही पाई गई। अपनी इस छवि को सुधारने के लिए एयर इंडिया ने सरकार से २० हजार करोड़ रुपए की माँग की। इसे देखते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में एक बैठक की गई थी, जिसमें दो महीनों के अंदर एयर इंडिया को ८०० करोड़ रुपए देने का प्रावधान रखा गया था। पर क्या केवल धन से एयर इंडिया की छवि सुधर जाएगी? एयर इंडिया को सबसे पहले अपने कर्मचारियों के हितों की रक्षा की जानी चाहिए। यदि उनके चेहरे हल्की से मुस्कराहट ही ला दे, तो यही बहुत है। मुरझाए चेहरों से कभी अच्छे कार्यों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। स्मितयुक्त चेहरे ही सफलता की पहली सीढ़ी होते हैं।
डॉ. महेश परिमल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels