बुधवार, 15 जुलाई 2009

ये हैं अंधेरे के राही

उद्यमिता की यात्रा दरअसल जोखिम एवं संकट के प्रबंधन का तरीका ढूंढने से जुड़ी है , लेकिन 40 वर्षीय दिनाज वेरवेटवाला के लिए यह आग के खतरे से जूझने वाली साबित हुई। 2005 में एक खतरनाक दुर्घटना में दिनाज करीब 80 फीसदी तक झुलस गईं और उनका फिटनेस कारोबार एक बार को तो ठप्प पड़ गया। वह कहती हैं , ' जिन लोगों को मैं फिटनेस का प्रशिक्षण दे रही थी , उन्होंने दोबारा सेंटर में दाखिला नहीं कराया। मेरी आय का एकमात्र स्त्रोत असफल साबित होने लगा था। '
इसके बाद दिनाज का परिवार अस्पताल के दस लाख रुपए चुकाने के लिए भी मुश्किल में पड़ गया। इससे उनके यहां काम करने वाले लोगों को वेतन देने पर भी संकट खड़ा हो गया। दिनाज कहती हैं , ' मैंने खुद से कहा कि इस तरह की चुनौतियां मेरा रास्ता नहीं रोक सकतीं। जब मैं बहुत गंभीर हालत में थी , तब भी मुझे भरोसा था कि मैं इस संकट से बाहर निकलने का रास्ता खोज निकालूंगी। ' करीब एक साल के बाद उनका कारोबार फिर से रास्ते पर आ गया।
मशहूर बिजनेस इतिहासकार प्रोफेसर द्विजेंद त्रिपाठी कहते हैं कि संकट के दौर से बाहर निकलने का जज्बा ही उद्यमियों की सफलता की दास्तां बनता है। वह बताते हैं, ' इससे निकलने के बारे में भी वे तब तक नहीं बता सकते जब तक कि वे संकट की स्थिति में नहीं पड़े हों। ' कुटोन्स रीटेल के प्रमोटर डीपीएस कोहली आज 793 करोड़ रुपए की कंपनी के स्वामी हैं। दिल्ली में 1984 के सिख विरोधी दंगों में कोहली का सब कुछ तबाह हो गया। 25 वर्ष के कोहली उस समय टेलीविजन बनाने की एक फैक्ट्री लगाने के लिए उड़ीसा से दिल्ली आए थे। उत्तर प्रदेश सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी अपट्रॉन के लिए कुछ दिनों तक टीवी सेट बनाने के बाद 19.82 में कोहली ने अपोलो नाम से अपना उत्पाद लॉन्च किया। दंगा शुरू होने के एक दिन बाद ही कोहली की फैक्ट्री और शोरूम को जमींदोज कर दिया गया। कोहली उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ' हमारे पास कंपनी को बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। ' कोहली ने दंगों में कम से कम चार करोड़ रुपए का नुकसान उठाया। कर्ज चुकाने के क्रम में कोहली और उनके परिवार के लिए सब कुछ बदल चुका था। वे तीन हजार रुपए प्रति महीने से भी कम रकम पर गुजारा कर रहे थे। मेकैनिकल इंजीनियर होने की वजह से कोहली को एक बीमा कंपनी में मोटर इंश्योरेंस सर्वेयर की नौकरी मिल गई। इस नौकरी ने कोहली को अगले छह साल तक सहारा दिया। 1991 में कोहली ने अपने चचेरे भाई बी एस साहनी के साथ मिलकर दो कमरे वाले दफ्तर से युवाओं पर केंद्रित ब्रांड चार्ली जीन्स को लॉन्च किया। वह कहते हैं , ' पैसे जुटाने के लिए मैंने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख दिए। ' धीरे-धीरे जब ऑफिस जाने वाले युवाओं में फैशन का क्रेज बढ़ने लगा और उन्होंने डेनिम से चिनोज और खाकी का रुख करना शुरू कर दिया , तो दोनों ने मिलकर 1999 में कुटोन्स ब्रांड लॉन्च किया। आज देश भर में कुटोन्स के 465 जगहों पर कम से कम 1438 स्टोर हैं और यह ब्रांड एक जाना-माना नाम बन चुका है।
संकट से निपटने में क्या उम्र का कोई संबंध है ?
गिरीश मिनोचा कहते हैं , ' जब आप युवा होते हैं , तो आप तीस वर्ष से अधिक के बारे में सोचते भी नहीं हैं। ' दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से 24साल की उम्र में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर चुके मिनोचा ने हैवेल्स में मार्केटिंग इंजीनियर के रूप में ज्वाइन किया। मिनोचा इलेक्ट्रिकल स्विचगियर की इस कंपनी में सरकारी कंपनियों को उत्पाद की बिक्री करने से जुड़े थे। 1989 में जनवरी की एक सर्द सुबह देर से दफ्तर पहुंचने पर बॉस ने उनसे जवाब तलब किया। गरमागरम बहस के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया और वापस अपने घर शिमला पहुंच गए। वह बताते हैं , ' मेरे पिता इस फैसले से काफी खफा थे और उन्होंने कहा कि जो समझ में आए करो। ' मिनोचा ने इसके बाद अपना कारोबार शुरू करने का फैसला किया। कॉलेज के दिनों से लेकर नौकरी करने तक बचाए 40000 रुपए और दादाजी से 60000 रुपए उधार लेकर उन्होंने शिमला से तेरह किलोमीटर दूर शोगी में जमीन खरीदी। यहां उन्होंने वेल्डिंग इलेक्ट्रोड बनाने के लिए एक फैक्ट्री लगाई।
फैक्ट्री लगाने के दौरान ही भूस्खलन की वजह से फैक्ट्री की दीवार गिर गई। इसके बाद मिनोचा ने हिमाचल सरकार द्वारा फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को दी जाने वाले राहत की खबर से इसी क्षेत्र में हाथ आजमाने की सोची। फ्लेवर्ड ड्रिंक्स,जैम,नेचुरल जूस, सीरप,सॉस और अचार बनाने के लिए मिनोचा ने फैक्ट्री लगाई। शुरुआत के तीन साल तक कारोबार में फायदा नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद फ्रूट वाइन के कारोबार में उनकी गाड़ी चल निकली। पिछले वर्ष उनका कारोबार दो करोड़ रुपए को पार कर गया है।

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