गुरुवार, 1 नवंबर 2007

हरीश परमार की बाल कविताएँ

मेरी बिटिया
छुपा छुपी के खेल में
कहाँ छुपी है मेरी बिटिया
ढूंँढ-ढूंँढ कर मैं तो हारा
मुझे मिली न मेरी बिटिया

घर का कोना-कोना देखा
हर एक बिछौना देखा
बढ़ती गई मेरी बेचैनी
उसका हर ठिकाना देखा

बोलो बिटिया कहाँ छुपी हो
कहाँ दुबक कर तुम बैठी हो
मैं हारा तुम जीती बाबा
बोलो क्या हमसे रूठी हो

एक आवाज हंँसने की आई
जैसे हंसे फूल और कलियाँ
माँ के ऑंचल में छुपी थी
मैं यहाँ हूँ बोली बिटिया

दौड़ी-दौड़ी आई बिटिया
सीने से लग गई बिटिया
मैं जानूँ और कोई न जाने
कितनी प्यारी है मेरी बिटिया

सोने की चिड़िया

सोने की चिड़िया
मेरा देश बन जाए
फिर सोने की चिड़िया
दांतो तले ऊँगली दबाए
अचरज से देखे दुनिया।
सबके दिल में आओ
प्यार हम जगा दें
पाठ प्रेम का पढ़ने आए
मेरे देश में सारी दुनिया
मेरा देश बन जाए
फिर सोने की चिड़िया।
सच्चे मन से याद करें
हम अपनी गौरव गाथा
चलो नया इतिहास बनाए
ऊँचा रहे अपना माथा
गली-गली, गाँव-गाँव में
बहे दूघ-दहीं की नदियाँ
मेरा देश बन जाए
फिर सोने की चिड़िया
सब धर्मों की बातें हम
जीवन में अपनाएँ
अपनी मंजिल पाने हम
मिल कर कदम बढ़ाएँ
मंदिर-मस्ंजिद गुरूद्वारे में
गूँजी अमृत वाणियाँ
मेरा देश बन जाए
फिर सोने की चिड़िया।


जन्म दिन पर

जंगल में घर-घर जाकर
बंदर ने यह बतलाया
कल मेरा जन्मदिन है
प्रीति भोज लेने आना।
सुबह होते ही बंदर ने
पहने कपड़े नए-नए
दर्पण में देखा चेहरा अपना
और फूला नहीं समाए।
लेकर आए सब साथी
अच्छे-अच्छे उपहार
शुभकामनाएँ पाकर सबकी
बंदर ने सबका किया सत्कार।
एक बंदरिया आकर बोली
हैप्पी बर्थ-डे टू यू
सुध बुध बंदर खो बैठा
देख बंदरिया का रूप।
दोनों में फिर प्यार हुआ
बंदर ने फिर किया ऐलान
मेरे जन्मदिन के सुअवसर पर
मेरी शादी होगी आज।
सब मित्रों ने मिल कर फिर
बंदर की शादी करवाई
जन्मदिन के सुअवसर पर
बंदर ने प्यारी दुल्हनिया पाई।
हरीश परमार

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