मंगलवार, 25 सितंबर 2007

प्रेम पत्र से एसएमएस तक...

भारती परिमल
प्रेम पत्र! वही प्रेम पत्र जो शकुन्तला ने कदम्ब के पत्तों पर नाखून से लिखकर दुष्यंत को दिया. वाटिका में कंगन में पड़ रही परछाई में सीता ने पढ़ा और एकांत में बाँसुरी की मीठी तान में राधा ने सुना. वही प्रेम पत्र या प्रेम संदेश, जो कैस ने रेगिस्तान की गर्म रेत पर ऊँगलियों की पोरों से लैला को लिखा. पानी की डूबती-उतराती लहरों के साथ सोहनी ने महिवाल को दिया. खेत की हरी-हरी लहलहाती फसलों को पार करते रांझा ने हीर तक पहुँचाया. उसी प्रेम पत्र ने समय के साथ एसएमएस का विकृत रूप धारण कर लिया है. यह एसएमएस आज युवाओं में एक टाइम पास रोग की तरह फैलता जा रहा है.
जानते हैं इस धरती पर सबसे पहला प्रेम पत्र आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व रुक्मिणी ने कृष्ण को लिखा था. मुरली मनोहर को लिखे गए इस प्रेमपत्र में उन्होंने कुछ इस तरह से अपनी भावनाएँ व्यक्त की थी- 'हे भुवनसुंदर, हे पुरुष श्रेष्ठ, कुल, शील, रूप, विद्या, वय, धन एवं प्रभाव से केवल अपने ही जैसे निरुपम और मनुष्य लोक को आनंद प्रदान करने वाले मेरे आराध्य, ऐसी कौन सी कुलवान, गुणशाली और धैर्यशाली कन्या होगी, जो आपको विवाह के समय पति रूप में स्वीकारेगी नहीं? आप विदर्भ देश में पधारें एवं मैं पार्वती मंदिर में आऊँ, तब मेरे साथ पाणिग्रहण करें.'
आज इक्कीसवीं सदी में जीने वाले मेरेलिना, स्वेतलाना, चार्मी, कशिश, पायल, वरुण, वेदांत सभी अपने प्रेम संदेश मोबाइल फोन द्वारा भेजते हैं. नए जमाने की इस युवा पीढी ने एक कदम आगे बढ़कर मोबाइल डेटिंग की सुनहरी सभ्यता विकसित की है. अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफे्रंड को दरिया किनारे या रेस्तरां अथवा सिनेमा हॉल में मिलने के लिए बुलाने में ये मोबाइल का भरपूर उपयोग करते हैं. ये पीढ़ी एसएमएस और मीस कॉल्स की सुविधा का भरपूर लाभ उठा रही है.
आज से लगभग 25-30 वर्ष पूर्व टेलीफोन केवल उच्चवर्ग में और अधिकारियों के घरों में ही देखे जाते थे, किंतु आज हालत यह है कि ये सभी की जरुरतों को पूरा करने वाला एक आवश्यक साधन बन गया है. यहाँ तक तो बात ठीक है, किंतु पिछले 5-10 वर्षों से मोबाइल फोन आज के कान्वेंट कल्चर में पलते-बढ़ते युवाओं के हाथों का खिलौना बन गया है. फैशन का यह रंग उन्हें डेटिंग और चेटिंग की एक अनोखी और वायवीय दुनिया में ले जाता है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज पूरे देश में चार करोड़ मोबाइलधारी हैं. इसमें से बड़े पैमाने पर 20 से 30 वर्ष के युवा हैं. अब तो हाईस्कूल के लड़के-लड़कियों के हाथों में भी मोबाइल देखने को मिल जाता है. जरा कल्पना करके देखिए, दो-ढाई हजार का मोबाइल फोन जब कच्ची उम्र के बच्चों के हाथों में आएगा, तो उसका उपयोग कैसा और कितना शर्मनाक होगा, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है.
बरसों पहले एक फिल्म आई थी- सरस्वतीचंद्र. इसमें नायिका नूतन अपने प्रेम को पत्र द्वारा व्यक्त करती है और गीत के माध्यम से कहती है- फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है. इंदीवर ने इस गीत में बहुत ही कोमल और हृदयस्पर्शी शद्वों के द्वारा मन के भावों को व्यक्त किया है. इसमें कहीं भी अश्लीलता नहीं है. इस गीत के माध्यम से अपने भावी पति के लिए निर्मल और निश्छल प्रेम का आकाश खुलता है और इसमें दोनों की प्रणय संवेदनाएँ पंख पसारती हैं. किंतु आज के मोबाइल एसएमएस में क्या ये पवित्रता देखी जा सकती है? आज के मोबाइल संदेश में द्विअर्थी, और ओछापन लिए हुए होते हैं, जो दिल को छूना तो बहुत दूर की बात हैं, होठों को भी नहीं छू पाते. एक झटके में ही अश्लीलता की पहचान और संस्कारों की धाियाँ उड़ा देते हैं.
यहाँ रुक्मिणी के प्रेमपत्र को लेकर आज का कोई युवा यह दलील जरूर कर सकता है कि जब रुक्मिणी ने आज से तीन हजार वर्ष पूर्व अपने प्रियतम को प्रेमपत्र लिखा था, तो हम इक्कीसवीं सदीं के युवा क्या अपने प्रिय पात्र को प्रेमपत्र के रूप में मोबाइल पर एसएमएस या इंटरनेट पर ई-मेल नहीं कर सकते? क्या इस दौड़ती-भागती जिंदगी में प्रेम के शॉट-कट के रूप में शॉर्ट-मेसेज को एक-दूसरे तक पहुँचा नहीं सकते? हाँ, उनका कहना शत-प्रतिशत सही है, किंतु रुक्मिणी के द्वारा भेजे गये प्रेमपत्र में एक मर्यादा थी, संस्कारों का गुलाबी चुनरिया थी, जो उसने अपने माथे पर ओढ़ रखी थी और फिर रुक्मिणी ने किसी अमीर, सुविधा संपन्न युवा राजकुमार को पत्र नहीं लिखा था, न ही किसी स्कूल या कॉलेज में अपने सहपाठी को पत्र लिखा था. उन्होंने तो शिशुपाल के विवाह प्रस्ताव को ठुकराने के लिए और अपने भविष्य को अंधकार के गर्त में जाने से रोकने के लिए एक ऐसे पूर्ण पुरुष को पत्र लिखा था, जो अधर्म का नाश कर सत्य की विजय के लिए प्रतिज्ञाबद्ध था. नर राक्षस के चंगुल से अपने आपको छुड़ाने के लिए अलौकिक व्यक्तित्व से सहायता माँगना, और उस सहायता के द्वारा अपने निर्मल, निश्छल, पवित्र प्रेम को व्यक्त करना कदापि गलत नहीं है और इसीलिए कहीं-कहीं संस्कारी परिवारों की कन्याएँ आज भी सुबह के समय पूजा में रुक्मिणी पत्र का पाठ करती हैं और देवकीनंदन जैसा पति पाने की कामना करती है. रुक्मिणी पत्र की यह पवित्रता आज भी इसे अमर प्रेमपत्र के रूप में पहचान देती है.
दूसरी ओर आज के युवा प्रेम को मात्र शरीर की भूख और टाईमपास मानकर कपड़ों की तरह मित्र बदलने मेें कोई परहेज नहीं करते. आज मोबाइल उनकी शाद्विक वासना को पूरा करने का एक सशक्त माध्यम बना हुआ है. मजे की बात तो यह है कि उनके यह मोबाइल संदेश अंग्रेजी भाषा के अर्थो की धाियाँ उड़ा रहे हैं. उनके संदेशों में अंग्रेजी के यू, वी, आर आदि-आदि शद्व किस प्रकार अक्षरों के रूप में उभर कर भाषा को द्विअर्थी बना देते हैं, यह तो उनके बोलचाल में भी झलकने लगा है.
मुंबई की एक टेलिकॉम कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर इस बात को स्वीकार करते हैं कि आज की पीढ़ी नए-नए मित्र बनाने में विश्वास करती है, कपड़ों की तरह मित्रों को चुनाव करना और उन्हें उसी तरह बदलने में उन्हें किसी प्रकार का पछतावा नहीं होता. मोबाइल नाम का यह इलेक्ट्रॉनिक खिलौना उनके लिए मनोरंजन का अच्छा साधन बन गया है. कितनी ही मोबाइल सर्विस तो केवल मोबाइल डेटिंग के लिए एक खास नंबर भी उपलव्ध कराती हैं. जन्मदिन, रोंज-डे, वेलेन्टाइन-डे आदि युवा उत्सवों पर तो इनकी सर्विस काफी लुभावनी हो जाती है.
एक मोबाइल कंपनी ने ऐसी जानकारी दी कि 2005 के वेलेंटाइन डे पर मोबाइल डेटिंग के संदेशों में 30 प्रतिशत की वृद्धि हो गई थी. उसमें भी अधिकांश संदेश 20 से 22 वर्ष के युवाओं के थे. सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि मोबाइल की यह हवा अब सुदूर गाँवों में भी बहने लगी है. उत्तर प्रदेश के गाँवों में 10 हजार 500, बिहार और झारखंड मेें 8 हजार 596 और दिल्ली और मुम्बई के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों से दस हजार एसएमएस प्रेषित किए गए थे.
एक मनोवैज्ञानिक ने अपने सर्वेक्षण के बाद बताया कि भारत के गाँवों में अब रुढ़ीवादिता की जंजीरें दरकने लगी हैं. फिल्मों और इंटरनेट ने ग्रामीणों को भी शहरी संस्कृति से परिचित करा दिया है. अब गाँवों के युवा भी अपने मोबाइल से अपनी प्रेयसी को एसएमएस करने लगे हैं. यही नहीं इस माध्यम से वे अपने प्रियजनों को एक खास स्थान पर बुलाने भी लगे हैं. इससे यह कहा जा सकता है कि गाँव की अल्हड़ गोरी ने पनघट की पगडंडियों को छोड़कर अब रेस्तरां का रुख कर लिया है. गाँवों का अल्प विकास, अल्प शिक्षण और बेकारी के कारण इन युवाओं के संदेशों में अश्लीलता देखने को मिल सकती है.
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि मोबाइल आज एक जरुरत की चीज कम फैशन की वस्तु बनकर रह गया है. इसमें कहीं भी भारतीय सभ्यता दिखाई नहीं देती. टूटती मर्यादाओं के बीच आज का युवा इसे केवल अपनी कामवासना की पूर्ति का साधन बनाने से भी नहीं चूक रहा है. मोबाइल का यह रोग अब सात समुंदर पार भी जाने लगा है. आज के युवा बिना एक-दूसरे को देखे, महीनों तक रोज ही इसी एसएमएस से बात करते हैं. इनके लिए अब चेहरा भी कोई मायने नहीं रखता. इन्हें इंतजार रहता है केवल उस अदृश्य प्रेयसी या प्रेमी के मोबाइल संदेश का. किसी युवा के पास यदि आधे घंटे के भीतर कोई संदेश नहीं आया, तो उसे चिंता होने लगती है, कहीं उसका मोबाइल खराब तो नहीं हो गया. उस समय उसकी परेशानी देखते ही बनती है. एसएमएस को लेकर मित्रों के बीच प्रतिस्पर्धा भी होती है. अब तो एक दिन में सौ एसएमएस मिलना मामूली बात है. इस तरह से यह कहा जा सकता है कि अपने प्रेम के इजहार का यह अब तक का सबसे विकृत रूप सामने आया है. हम कितने भी आगे बढ़ जाएँ, पर आज जो यह प्रगति देखने को मिल रही है, वह यही बताती है कि आज का युवा मोबाइल के चक्रव्यूह में बुरी तरह से फँस गया है, इसके लिए दोषी वे विदेशी कंपनियाँ हैं, जो इन्हें आकाशीय सपने दिखा-दिखाकर भरमा रही हैं.
भारती परिमल

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